पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 27.pdf/२११

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१७९
टिप्पणियाँ

कराचीमें अन्त्यज शाला

भाई कल्याणजीने मुझे इसी पत्रमें सूचित किया है कि भाई नारणदास कराचीमें अपनी जिम्मेदारीपर चार अन्त्यज शालाएँ चला रहे हैं। इन शालाओंमें शिक्षक ब्राह्मण हैं। वे विद्यार्थियोंसे शालाओंमें ही दाँत साफ करवाते हैं, उनको वहीं स्नान करवाते है और भोजन कराते हैं। इसलिए वे भली-भाँति स्वच्छ रहते हैं। दाँत साफ करवानेका नियम रखना तो अन्त्यजेतर शालाओंमें भी होना चाहिए। शारीरिक स्वस्थता दाँतोंकी सफाईपर बहुत-कुछ निर्भर है, यह बात लोग आम तौरपर नहीं जानते, नहीं तो जिन शालाओंके बालकोंके दाँत साफ न हों उनके शिक्षक दण्डनीय माने जायें।

कर्मचारियोंको छुट्टी

स्वयं गुणग्राही होनेके कारण मैं जहाँ भी कोई अच्छी बात खता हूँ वहाँसे उसे सीखनेमें कोई संकोच नहीं करता। 'बाइबिल'में कहा गया है कि रविवारका दिन ईश्वरकी प्रार्थनाके लिए रखना चाहिए। जिस दृष्टिसे यह बात कही गई है उसका पालन तो बहुत ही कम ईसाई करते हैं, किन्तु इस दिन नौकरीसे विश्रान्ति और छुट्टी तो पश्चिममें लगभग सभी जगह रहती है। इस दिन छुट्टी रखनेसे काममें कोई कमी नहीं हुई है। उलटे देखनेमें यह आया है कि सर्वत्र काम और ज्यादा अच्छा होता है। सप्ताहमें ऐसा एक दिन हिन्दुस्तानकी खानगी पेढ़ियोंमें मनाया जाये तो अच्छा हो, ऐसा विचार करके एक भाईने बम्बई से लिखा है :[१]

मेरी बातको कोई महत्त्व देगा या नहीं यह तो मैं नहीं जानता, किन्तु मैं उक्त सुझावका पूरा समर्थन करता हूँ। यदि व्यापारी स्वयं छुट्टी लें और अपने कर्मचारियोंको भी छुट्टी दें तो महीने में कम काम और कम कमाईको जोखिम होनेपर भी उनको और उनके कर्मचारियोंको बहुत-कुछ फायदा होगा, इस बारे में मुझे कोई शंका ही नहीं है। सरकारी विभागोंमें तो रविवारकी छुट्टी रहती ही है, किन्तु यह नहीं कहा जा सकता कि इससे कामका कुछ हर्ज हुआ है। अंग्रेजी पेढ़ियोंकी दुकानोंमें रविवारको कामकाज बन्द रहता है, किन्तु जहाँतक हम जानते हैं इससे उनको भी कोई नुकसान नहीं हुआ है। मैं नहीं समझता कि सुबहसे लेकर सायंकालतक काम करनेवाली पेढ़ियोंमें बहुत ज्यादा मुनाफा होता होगा। इससे उनकी हानि तो स्पष्ट दिखाई देती है। उनमें न तो दुकानदारोंको साँस लेनेका समय मिलता है और न उनके कर्मचारियोंको। जिनका लगभग पूरा दिन दुकानमें ही जाता है और जो घरमें केवल खाना खाते और सोते ही हैं, वे गृहस्थ नहीं, दुकानस्थ ही कहे जाने चाहिए। वे अपने बाल-बच्चोंकी देख-रेख नहीं कर सकते। उनके बाल-बच्चोंको उनका साथ तो मिल ही कैसे सकता है? उनको अपनी तन्दुरुस्तीतक ठीक रखनेके लिए नित्य दवाएँ लेते रहनकी जरूरत होती है। नौकरोंकी हालत तो उनसे भी खराब होती

  1. पत्र यहाँ नहीं दिया गया है। उसमें खानगी पेढ़ियोंमें काम करनेवालोंको सप्ताहमें एक दिन छुट्टी मिलनेके प्रश्नपर नवजीवनमें लिखनेकी प्रार्थना की गई थी।