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ग्राम-प्रवेश

योग्यता अथवा कल्याणके सम्बन्धमें शंका नहीं होती वैसे ही मुझे कताई-सदस्यताकी योग्यता अथवा चरखेकी लोक-कल्याणकी क्षमताके सम्बन्धमें कोई शंका नहीं हो सकती। इसलिए मैं तो चरखे से ही लगा रहना चाहता हूँ और अपने सब साथियोंको भी यही सलाह देता हूँ।

मेरा यह भी विचार है कि लोक-कल्याणकी दृष्टिसे जो सूत काता जाये वह महँगा न पड़े, सस्ता ही पड़े। किन्तु हमें लोगोंकी हदसे ज्यादा खुशामद नहीं करनी चाहिए और उनको ऐसी सुविधाएँ नहीं देनी चाहिए जिनमें ज्यादा खर्च पड़ता हो। यदि लोगोंको सूत कातने के लिए तैयार करनेमें खर्च अधिक होता है तो सूत कातना निरर्थक समझना चाहिए, क्योंकि इसका अर्थ तो यह हुआ कि हम सूत कातनेका आग्रह करने जायें तो कातनेवालेसे कुछ लानेके बजाय उलटे उसे कुछ दे आयें। यह तो दिवालियेपनका व्यापार हुआ। इसमें सूत कातनेसे जो लाभ माना जाता है, वही समाप्त हो जाता है।

हमें सूत कातनेका प्रयोग वैज्ञानिक विधिसे करना है अर्थात् कातनेवाले सच्चे त्यागी स्त्री-पुरुष कितने मिलते हैं यह देखना चाहिए। सच्चे कातनेवाले वे लोग ही हैं जो अपने-आप २,००० गज सूत कातकर दे दें अथवा गरीब हों तो कांग्रेसके दफ्तरसे रुई लेकर उसका सूत कातकर भेज दिया करें।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, ३१-५-१९२५

९८. ग्राम-प्रवेश

जहाँ देखता हूँ वहीं सुखसे ज्यादा दुःख दिखाई देता है और यह भी दिखाई देता है कि इस दुःखके कारण हम स्वयं ही हैं।

बंगालके कितने ही अभिनन्दन-पत्रोंमें मौसमी बुखार, काला आजार आदि बीमारियोंकी बात सदा रहती है। बंगालके कार्यकर्ताओंने मेरे निवेदनका उचित पालन किया है। मैंने चाहा था कि वे अभिनन्दन-पत्रोंमें मेरी स्तुति न दें, अपनी स्थानीय स्थितियोंका वर्णन दें। देखता हूँ कि प्रायः सभी अभिनन्दन-पत्रोंमें मेरी इस प्रार्थनापर पूरे तौरसे ध्यान दिया गया है। इससे मुझे बहुत जानकारी मिली है। किसी-किसी जगह आबादी कम होती जा रही है। क्योंकि वहाँ अनेक प्रकारकी बीमारियोंसे अकाल मृत्यु बढ़ती जाती है। शारीरिक व्याधियोंके अतिरिक्त फसलको नुकसान पहुँचानेवाली एक नई मुसीबत और पैदा हो गई है। वह एक पौधा है जिसे 'वाटर हायसिंथ' कहते हैं। इसका देशी नाम तो मालूम नहीं हुआ है। कहते हैं कि कोई आदमी अनजाने इसे पश्चिमसे ले आया था। वह आया कहीसे हो, परन्तु वह अब पद्मा नदीमें मीलोंतक फैला मिलता है। यह अनाजकी फसलको नष्ट कर देता है। यह जहरीला पौधा जिस-जिस हिस्सेमें देखा गया है, उसमें नदीके किनारेके खेतोंमें धानकी फसल लगभग चौपट हो गई है। सरकारने उसे निर्मूल करनेके उपाय तो किये हैं; परन्तु अभीतक तो उनमें से एक भी सफल हुआ नहीं दिखाई देता।