१००. पत्र : देवचन्द पारेखको
शान्तिनिकेतन
ज्येष्ठ सुदी ८ [३१ मई, १९२५][१]
आपका विस्तृत पत्र मिला। मेरे खयालसे तो मैं कुछ भी करनेका साहस नहीं कर सकता। इसलिए मैं आपका पत्र रामजीभाईको[२] भेज रहा हूँ। वे इसे पढ़ लें और इस सम्बन्धमें आपसे बात कर लें। उसके बाद आप सब जो उचित समझें, वह करें। हमें तो जैसे भी हो, काठियावाड़को खादीमय बनाकर किसानोंका जीवन सरल और सुखमय बनाना है। यदि इस सम्बन्धमें निर्णयके लिए मगनलाल और लक्ष्मीदासको बुलानेकी आवश्यकता हो तो उनको बुला लें।
मोहनदासके वन्देमातरम्
मुझे अभी बंगालमें डेढ़ मास और लगेगा, फिर असम जाना होगा।
गुजराती पत्र (जी॰ एन॰ ५६९३) की फोटो-नकलसे।
१०१. पत्र : मणिबहन पटेलको
ज्येष्ठ सुदी ८ [३१ मई, १९२५][३]
तुम्हारा पत्र मिला। लम्बी चिट्ठी लिखनेका लोभ करूँ तो शायद लिख ही न सकूँ, इसलिए छोटा पत्र लिखकर ही सन्तोष करता हूँ। तुम्हें चूड़ियाँ[४] तो कभीकी मिल गई होंगी। ये मैंने कलकत्तासे लेकर भेजी हैं और दूसरी जो ढाकासे खरीदी है, अभी मेरे पास हैं। वे तुम्हें मेरे आनेपर ही मिलेंगी। तुम्हें चि॰ डाह्याभाईके बारेमें विस्तृत उत्तर महादेवने दिया होगा। उसे कमाना हो तो खुशीसे कमाये। उसकी तबीयत ठीक हो गई है, यह जानकर खुशी हुई। चि॰ यशोदासे[५] कहना कि