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भाषण : शान्तिनिकेतनमें

वह मुझे पत्र लिखे। बापूकी खूब सेवा करना और उनपर जो बोझ है उसमें तुम तीनों जितना हाथ बँटा सको, बँटाना। मुझे अभी बंगालमें एक मास और विताना होगा।

बापूका आशीर्वाद

[गुजरातीसे]
बापुना पत्रो-४ : मणिबहेन पटेलने
 

१०२. भाषण : शान्तिनिकेतनमें

३१ मई, १९२५

मैं न तो आपसे यह कहता हूँ कि आप अपनी कविता छोड़ दीजिए, न यही कहता हूँ कि साहित्य या संगीत छोड़ दीजिए। मैं सिर्फ इतना ही चाहता हूँ कि आप अपने इन तमाम कामोंको करते हुए भी सिर्फ आध घंटा चरखेके लिए दे दीजिए। अबतक किसीने ऐसा नहीं कहा कि हम आधा घंटा भी नहीं निकाल सकते। चरखा हमारी प्रान्तीयताको मिटानेवाला है। आज उत्तरी हिन्दुस्तानका आदमी बंगालमें जाकर अपना परिचय हिन्दुस्तानी कहकर देता है। बंगाली दूसरे प्रान्तोंमें अपनेको परदेशी मानते हैं। दक्षिणके लोग उत्तरमें जाकर विदेशी-जैसे बन जाते हैं। चरखा ही एकमात्र ऐसा साधन है कि जिससे यह भान होता है कि हम सब एक देशको सन्तान हैं। हमने आजतक कुछ करके नहीं बताया, अतः कुछ करके तो बता दें। विदेशी कपड़ेका बहिष्कार एक ऐसी चीज है कि जिसके लिए सब मिलकर प्रयत्न कर सकते हैं, जिसमें सब एक-सा हिस्सा ले सकते हैं। अस्पृश्यता तो अकेले हिन्दुओंको ही दुःख देती है; मुसलमानोंके झगड़े समय पाकर मिट जायेंगे——पर खादीके बिना सारा देश दरिद्रतामें पड़ा-पड़ा सड़ता रहेगा। मध्य आफ्रिकामें निद्राका रोग पाया जाता है,——लोग महीनोंतक बहोश पड़े रहते हैं और अन्तमें मर जाते——हमारे देशके निद्रारोगको सिवा चरखेके और दवा नहीं है।[१]

हिन्दी नवजीवन, १८-६-१९२५
 
  1. इस भाषणका संक्षिप्त विवरण ३-६-१९२५ की अमृतबाजार पत्रिकामें भी उपलब्ध है।