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भेंट : डॉ॰ एच॰ डब्ल्यू॰ बी॰ मोरेनोसे

दक्षिण भारतका एक आंग्ल-भारतीय स्टेशन मास्टर मेरा मित्र है। उसने रहन-सहनका एक दिखावटी तरीका अपना लिया है। यह बड़ीं गलत-सी बात है। मेरा यह मित्र २० सालकी सेवाके बाद भी ३०० रु॰ महीना पाता है, लेकिन चूँकि उसे यूरोपीय तौर-तरीकेसे रहना पड़ता है, इसलिए वह अपनी बीबी और चार बच्चोंकी जरूरतें पूरी करने और परिवारको उपयुक्त शिक्षाकी सुविधाएँ देनेके बाद एक पैसा तक नहीं बचा पाता। इस आंग्ल-भारतीयने मुझे बताया है कि उसे लगता है कि इससे बर्बादी ही हाथ लगती है; फिर भी उसे रहन-सहनका ऐसा ढंग कायम रखनेके लिए मजबूर होना पड़ता है, क्योंकि वह यदि दूसरा कोई तरीका अपनाये तो रेलवेमें उसकी तरक्की बन्द ही हो जायेगी।

डॉ॰ मोरेनोने कहा कि आंग्ल-भारतीयोंको जिन कठिनाइयोंका सामना करना पड़ता है उन्होंने उनमें से कुछ ही का बयान किया है। उन्होंने गांधीजीसे भारतके सच्चे मित्रके नाते उनके बारेमें सलाह माँगी और कहा कि आंग्ल-भारतीय देशकी मिट्टीसे ही जन्मे हैं और देशके साथ उनके हित स्थायी रूपसे जुड़े हुए हैं।

जवाबमें श्री गांधीने कहा कि म इन भावनाओंकी कद्र करता हूँ। आंग्ल-भारतीयोंके स्थायी हितोंकी तो सभी भारतीय चिन्ता करेंगे। आंग्ल-भारतीयोंको भारतीयोंसे अलग करनेवाली बातें तो बहुत कम हैं। मुझे खुशी है कि आपने इस मामलेमें मेरे साथ इतना दिल खोलकर बात की। उन्होंने कहा कि मैं अपने भारतके दौरोंमें कितने ही अन्य आंग्ल-भारतीयोंसे मिला हूँ। वे जब-तब मेरी सलाह लेने आते हैं, अनेकों ऐसे आंग्ल-भारतीय निजी तौरपर मुझसे मिलने आते हैं और सभी साम्प्रदायिक मामलों में मेरी सलाह लेते हैं। वे मेरे तर्कोंका औचित्य तो स्वीकार करते हैं, पर उन्हें अमलमें नहीं ला पाते। उनमें अमल करने लायक नैतिक बल नहीं है। गांधीजीने डॉ॰ मोरेनोको सलाह दी कि आपने जिस पवित्र कार्यको अपने जीवनका उद्देश्य बनाया है, उसे शिथिल न होने दें, क्योंकि आंग्ल-भारतीय समुदायकी मुक्ति सिर्फ इसी नीतिपर अमल करनेमें है। आपको आलोचनासे हतोत्साहित होकर विचारों और कार्योंमें संकीर्णता नहीं आने देनी चाहिए। इस सिलसिलेमें बंगालके बुद्धिजीवियों और देशके मेहनतकशोंका उदाहरण सामने है।

भेंटके अन्तमें डॉ॰ मोरेनोन श्री गांधीसे आंग्ल-भारतीयोंसे सम्बन्धित कई प्रश्न 'यंग इंडिया' के स्तम्भोंके जरिये पूछते रह सकनकी इच्छा व्यक्त की ताकि सम्बद्ध प्रश्नोंपर सुविचारित उत्तर मिल जायें। श्री गांधीने कहा :

आपके समुदायके एक मित्रके नाते, मैं ऐसे प्रश्नोंका उसी तरह स्वागत करूँगा जैसे कि उन सब लोगोंके प्रश्नोंका करता हूँ जो भारतमें जन्मे हैं या रहते हैं। इन मसलोंके बारेमें यथाशक्ति सभी गलतफहमियाँ दूर करनेसे मुझे खुशी हासिल होगी ताकि हम भविष्यको और अच्छी तरह समझ सकें। आखिर हम दोनों एक ही उद्देश्य अर्थात् आपके और मेरे अपने देश भारतकी उन्नतिके लिए काम कर रहे हैं।

[अंग्रेजीसे]
अमृतबाजार पत्रिका, २-६-१९२५