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१०७. भाषण : भवानीपुर, कलकत्तामें[१]

२ जून, १९२५

श्री गांधीने कहा कि चरखा मुझे बहुत प्रिय है और यह जानकर कि राष्ट्रीय स्कूलके पाठ्यक्रममें उसे स्थान मिल गया है, मुझे खुशी हुई है। आशा है कि लड़के मन लगाकर कातेंगे और कुशल कतैये बनेंगे। ऐसे हर स्त्री-पुरुष और बच्चेसे, जिसके दिलमें आम जनतासे हमदर्दी है, मैं प्रतिदिन कमसे-कम आधा घंटा चरखा चलानेकी आशा करता हूँ। श्री गांधीने कहा कि चरखा ही आम जनता और उच्च वर्गोंको जोड़नेवाली एकमात्र कड़ी है।

श्री गांधीने अस्पृश्यता और हिन्दू-मुस्लिम एकता की भी चर्चा की।

[अंग्रेजीसे]
हिन्दू, ४-६-१९२५
 

१०८. वाइकोम

वाइकोम सत्याग्रहका[२] जनताके ध्यानमें बना रहना जरूरी है। उसे यह मालूम होना चाहिए कि सत्याग्रही इस समय पहलेसे भी ऊँचे प्रकारके अनुशासनका पालन कर रहे हैं। पहले उनको आगे बढ़नेसे रोकनेके लिए जो स्थूल बाधा खड़ी की गई थी उसके सामने बैठकर वे चरखे चलाते थे। यह बाधा थी पुलिस द्वारा रक्षित एक बाड़। पाठक जानते हैं कि अब वह बाड़ हटा दी गई है, पहरेदार हटा लिये गये हैं और वहाँ जानेकी मनाहीका हुक्म भी वापस ले लिया गया है और अब सत्याग्रही अपने आप स्वीकार किये गये नैतिक प्रतिबन्धका पालन स्वेच्छासे कर रहे हैं। अवश्य ही वे यह आशा करते हैं और यह उन्होंने साफ-साफ जाहिर भी कर दिया है कि वे सवर्ण हिन्दू, जिनका इससे सीधा सम्बन्ध है, कठोरता त्याग देंगे तथा सर- कार स्वयं शीघ्र सड़कोंको उन लोगोंके लिए, जो 'अनुपगम्य' कहे जाते हैं, उसी प्रकार खोल देनेकी घोषणा कर देगी जिस प्रकार वे अभी दूसरे सभी मनुष्यों—यहाँ तक कि बिल्लियों और कुत्तोंके लिए भी खुली हैं। त्रावणकोरकी हिन्दू सरकारको इस अमानुषिक अन्धविश्वासका, जो हिन्दू धर्ममें घुस आया है, समर्थन नहीं करना चाहिए। यह उसका दलित जातियोंके प्रति दोहरा कर्त्तव्य है—एक तो प्रत्येक दयालु

  1. यह भाषण राष्ट्रीय शाला और 'सेवक समिति' की ओरसे भेंट किये गये अभिनन्दन-पत्रोंके उत्तरमें दिया गया था।
  2. जो वाइकोम (केरल) में एक मन्दिरको और उसके पासकी सड़कको एजवहा और अन्य पिछड़ी जातियोंके लिए खोलनेके लिए १९२४ में चलाया गया; देखिए खण्ड २३, पृष्ठ ५४७-५२ ।