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वाइकोम

सरकारका अपने अधीनस्थ दलित मानवोंके प्रति जो दायित्व होता है, उसके कारण तथा दूसरे एक हिन्दू सरकारका हिन्दुत्वके प्रति जो दायित्व है, उसके कारण।

यह मैंने शासनके प्रति कहा।

त्रावणकोरके सवर्ण हिन्दुओंने मुझसे वादा किया था कि वे सरकारको तबतक चैन न लेने देंगे जबतक उक्त सड़कें अनुपगम्य पंचमोंके लिए खोल नहीं दी जातीं। यों ऐसा वादा करना जरूरी नहीं था; क्योंकि यह तो उनका कर्त्तव्य ही है। उन्होंने मुझे विश्वास दिलाया था कि वे समस्त त्रावणकोरमें सभाएँ करेंगे, जिससे सरकारको स्पष्ट रूपसे यह दीख जाये कि वे इन पंचमोंके लिए सड़कोंपर चलनेकी मनाहीको हिन्दुत्वके विरुद्ध मानते हैं और उसे असह्य समझते हैं। सार्वजनिक सभाएँ करनेके अतिरिक्त उन्हें सवर्ण हिन्दुओंके दस्तखत करके अन्त्यजोंके लिए इन सड़कोंको खोलनेका एक ऐसा वृहद आवेदन भी प्रस्तुत करना था। मालूम नहीं जिन सज्जनोंने मुझे ऐसा आश्वासन दिया था, वे अपनी प्रतिज्ञाका पालन कर रहे हैं अथवा नहीं।

अब कुछ उनके बारेमें जिन्हें गलतीसे 'अनुपगम्य' कहा जाता है। मुझे मालूम हुआ है कि वे धीरज खो रहे हैं। उन्हें धीरज खोनेका अधिकार है। मुझे यह भी बताया गया है कि सत्याग्रहसे उनका विश्वास उठ रहा है । यदि यह सच है तो विश्वासकी इस कमीसे यह जाहिर होता है कि वे नहीं जानते, सत्याग्रह कैसे अपना असर डालता है। यह एक ऐसी शक्ति है जो अपना काम चुपचाप तथा देखनेमें धीरे-धीरे करती है। सच कहें तो दुनियामें ऐसी कोई दूसरी शक्ति नहीं है जिसका प्रभाव इतना सीधा और त्वरित होता हो। लेकिन कभी-कभी पशुबलसे सफलता अधिक द्रुत गतिसे प्राप्त होती दिखाई पड़ती है। शारीरिक श्रम द्वारा रोजी कमाना सत्याग्रह द्वारा रोजी कमानेका एक प्रकार है। स्टाक एक्सचेंजके जुएसे अथवा घरमें सैंध लगानेसे, जो कि सत्याग्रहके विपरीत क्रियाएँ हैं, प्रत्यक्षतः धनकी उपलब्धि तत्काल हो सकती है। लेकिन मैं ऐसा मानता हूँ कि दुनियाने अबतक यह समझ लिया है कि घरमें सैंध लगाना तथा जुआ खेलना, रोजी कमानेके कोई ढंग ही नहीं हैं तथा उनसे जुआरी तथा चोरको बजाय लाभके नुकसान ही होता है। अनुपगम्य पंचम अन्ध-विश्वासी सवर्णोंसे खुली लड़ाई लड़कर जबरदस्ती मन्दिरके पासकी सड़कोंपर जा सकते हैं; लेकिन वे इससे हिन्दुत्वमें सुधार तो नहीं कर सकेंगे। उनका तरीका लोगोंको जबरदस्ती बदलनेका तरीका होगा। मुझे यह भी मालूम हुआ है कि उनमें से कुछ लोग, अपने कष्ट तत्काल कम न होनेकी परिस्थितिमें ईसाई धर्म, इस्लाम अथवा बौद्ध धर्म ग्रहण कर लेनेकी धमकी भी देते हैं। मेरे तुच्छ विचारमें जो लोग धमकीका प्रयोग करते हैं वे धर्मका अर्थ नहीं जानते। धर्म तो हमारे जीवन-मरणका प्रश्न है। आदमी अपना धर्मपरिवर्तन ऐसे नहीं कर लेता जैसे वह अपनी पोशाक बदल लेता है। धर्म तो उसके साथ उसकी मृत्युके बादतक लगा रहता है। यदि वह अपने धर्मको मानता है तो दूसरोंको अनुग्रहीत करने के लिए नहीं बल्कि इसलिए कि वह इसके अलावा और कुछ कर ही नहीं सकता। एकपत्नी-व्रती अपनी पत्नीसे अनन्यभावसे प्रेम करता है। उसकी पत्नी बेवफा हो जाती है वह तब भी उसके प्रति निष्ठावान रहता है। उससे उसका

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