पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 27.pdf/२२६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१९४
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

गठबन्धन खूनके रिश्तेसे भी अधिक दृढ़ होता है। धर्म-बन्धन भी, यदि उसका कुछ मूल्य हो तो, उसी प्रकारका होता है। धर्म तो हृदयका विषय होता है। एक अस्पृश्य जो जुल्म किये जानेके बावजूद हिन्दुत्वका पालन करता रहता है, अपने आपको ऊँचा बतानेवाले हिन्दूसे ज्यादा सच्चा हिन्दू है, क्योंकि वह उच्चवर्णी हिन्दू तो अपनी उच्चताके अपने दावेसे ही हिन्दुत्वका निषेध करता है। इसलिए जो पंचम लोग हिन्दू धर्मको छोड़नेकी धमकी देते हैं, वे मेरी सम्मतिमें अपने धर्मसे विश्वासघात करते हैं।

लेकिन सत्याग्रहीका मार्ग स्पष्ट है। उसे इन सभी विपरीत धाराओंके मध्यमें अविचल खड़ा रहना चाहिए। उसे न तो अंधे रूढ़िवादियोंके प्रति अधीर होना चाहिए और न दलित लोगोंकी विश्वासहीनतासे खीझना ही चाहिए। उसको जानना चाहिए कि उसका कष्टसहन कठोरसे-कठोर धर्मान्ध मनुष्यके कठोरतम हृदयको भी पिघला देगा तथा युगोंसे दबाकर रखे हुए डगमगाते पंचम भाईकी रक्षाके लिए दीवारका काम देगा। उसे जानना चाहिए कि राहत तभी मिलेगी जब उसकी कमसे-कम आशा होगी; उस कठोर तथा दयालु प्रभुका ऐसा ही तरीका है। वह अपने भक्तोंकी पूरी-पूरी अग्नि-परीक्षा लेता है और उन्हें एक रजकणसे भी अधिक तुच्छ बनाकर खुश होता है। अपने संकटके समय सत्याग्रहीको अपने मनमें पौराणिक कथामें वर्णित उस गजराजकी प्रार्थनाका स्मरण करना चाहिए, भगवानने जिसकी रक्षा उस समय की थी जब वह बिलकुल हताश हो चुका था।

आंग्ल-भारतीय

मैंने श्री मोरेनोको यह सुझाव दिया था कि आंग्ल-भारतीयोंको अन्य भारतीयोंके समान ही सूत कातना और खद्दर पहनना चाहिए। मैं देखता हूँ कि कुछ सज्जनोंने इस सुझावकी हँसी उड़ाई है। इस सुझावकी हँसी उड़ाना है तो बड़ा आसान, परन्तु मुझे अपनी दवापर कामिल यकीन है और मैं जानता हूँ कि आज लोग जिस बातपर हँस रहे हैं, उसीको बहुत जल्दी बिलकुल ठीक समझने लगेंगे। आंग्ल-भारतीय भाइयोंके प्रति मेरे मनमें कोई दुर्भाव नहीं है। मेरी स्वराज्यकी कल्पनामें उनके लिए भी उतना ही स्थान है जितना भारतमें पैदा हुए या भारतको अपना देश बना लेनेवाले किसी दूसरे मनुष्यके लिए है। इसलिए चाहे कुछ लोग इस समय मेरी बातका गलत अर्थ लगायें, परन्तु मैं जानता हूँ कि अन्तमें उनकी गलतफहमी दूर हो जायेगी। मैं एक हिन्दुस्तानी और दूसरे हिन्दुस्तानीमें कोई भेद नहीं करता। मैंने आंग्ल-भारतीयोंमें भी गरीब वर्गके बहुत लोग देखे हैं और मैं उनसे मिला हूँ। यदि उन्हें थोड़े भी सुखसे रहना हो तो उन्हें दूसरे गरीब हिन्दुस्तानियोंका साथ देना होगा। उन्हें उनके दुःखमें शरीक होना और जहाँतक हो सके उनके जैसा जीवन व्यतीत करना होगा। खादी सब लोगोंकी सामान्य पोषाक हो सकती है; तो फिर उन्हें औरोंके साथ-साथ सूत क्यों नहीं कातना चाहिए? देशके गरीबों और अपने बीचकी सहानुभूति-सूचक इस प्रत्यक्ष और व्यापक कड़ीको अपनानेमें शर्मकी कोई बात नहीं है। अपनी जन्मभूमिके दीन- दरिद्र लोगोंके साथ अपनेको तद्रूप करनेमें आंग्ल-भारतीय भाई पीछे क्यों रहें? उन्हें मामूली हिन्दुस्तानीसे अपनेको बड़ा और ऊँचा समझनेकी झूठी शिक्षा दी गई है। इस