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खादी प्रतिष्ठान

उच्चताकी झूठी भावनाके कारण वे दरअसल अपने ही घरमें विदेशी-जैसे बन गये हैं। और वे अंग्रेजोंमें तो मिल नहीं सकते। उनके लिए किसी दूसरे देशको अपना देश समझना नामुमकिन है। यदि वे किसी उपनिवेशमें जानेकी कोशिश करें तो वहाँ उनको उसी दुर्गति और उन्हीं निर्योग्यताओंका सामना करना होगा, जिनका सामना एक मामूली हिन्दुस्तानी प्रवासीको करना होता है। इसलिए मैंने बड़े नम्रभावसे और ऐसी सचाईसे, जिसके मूलमें मेरा गहरा विश्वास है, यह कहा है कि उन्हें अपने जीवन सम्बन्धी विचार बदलने चाहिए। उन्हें वैसा ही होना चाहिए, जैसे वास्तवमें वे हैं अर्थात् भारतके लोगोंकी तरह। तब उनमें उचित सन्तुलन आ जायेगा, वे अपने माता-पिता—दोनोंके सद्गुणोंको ग्रहण करेंगे और खुद अपनी, अपने देशकी तथा अपने यूरोपीय माता या पिताकी भारी सेवा करेंगे। उस अवस्थामें, अपनी एकदम उचित स्थितिको प्राप्त करनेके बाद, वे अंग्रेजोंसे जो-कुछ कहेंगे उनपर उसका असर होगा और वे उनसे अपने जाती तजुर्बेकी ताकतके साथ बातें कर सकेंगे। मैंने डाक्टर मोरेनोसे न यह कहा था और न अब कहता हूँ कि आंग्ल-भारतीय समाजके गरीबसे-गरीब लोग भी सूत कातकर उससे गुजर करें और उसीमें सन्तोष मानें। फिर भी इस बातका कोई कारण दिखाई नहीं देता कि राष्ट्रीय दृष्टिसे उनमें से बड़से-बड़े लोग भी सूत क्यों न कातें? हाँ, मुझे यह कहते हुए जरा भी हिचकिचाहट नहीं होती कि उनमें जो लोग बेहद गरीब हैं, वे अच्छी तरहसे बुनाई सीख लें। यह एक सहायक धन्धा है। जो लोग सीख सकते हों, वे इसे ईमानदारीके साथ रोटी कमानेके लिए सीखें, क्योंकि कुशलतासे और कलात्मक बुनाई करनेवाले लोग ४० रु॰ से ५० रु॰ मासिकतक पैदा कर सकते हैं।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ४-६-१९२५
 

१०९. खादी प्रतिष्ठान

बाढ़ और अकालके संकटको दूर करनेमें चरखा कहाँतक सहायक हो सकता है, इसका जिक्र मैंने अन्यत्र किया है। यह अपने-आपमें एक स्वतन्त्र प्रयोग है। परन्तु इससे जो अनुभव आचार्य राय तथा जैसा कि वे उन्हें मानते हैं उनके दाहिने हाथ, सतीश बाबूने प्राप्त किया है, उसकी इतिश्री इस प्रयोगसे ही नहीं हो जाती। वे दोनों रसायनशास्त्री हैं। उनका वैज्ञानिक मस्तिष्क उन्हें इस बातकी छानबीन करनेको मजबूर करता है कि बंगालके किसानोंको सदाके लिए बतौर एक सहायक धन्धेके चरखा और खद्दर किस हदतक उपयोगी हो सकता है। एक छोटा-सा प्रयोग बढ़ते-बढ़ते एक बड़ी संस्था—खादी प्रतिष्ठान—के रूपमें परिणत हो गया है। बंगालके कितने ही हिस्सोंमें उसकी शाखायें खुल गई हैं तथा और भी खोले जानेका विचार है। उसका उद्देश्य शुद्ध खादीका निर्माण और उसका विक्रय करना है। उसका उद्देश्य यह भी है कि पुस्तकों आदिके प्रकाशन और मैजिक लैंटर्नके प्रयोग सहित व्याख्यानोंके द्वारा खादी और चरखेको लोकप्रिय बनाया जाये। अपेक्षाकृत अधिक स्थायी बनानेके