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खादी प्रतिष्ठान

कहीं-कहीं कुछ काम हो रहा है। मैं तो इन तमाम संस्थाओंके कामको, यद्यपि नामसे नहीं पर भावरूपमें, कांग्रेसका ही काम मानता हूँ। जरूरत इस बातकी है कि तमाम बिखरी हुई शक्तियाँ एक सूत्रमें बँध जायें जिससे समय, बुद्धि, शक्ति, और धन कम खर्च हो। इन संस्थाओंके अध्यक्ष आपसमें मिलें, अपने अनुभवोंका आदान-प्रदान करें और एक संयुक्त कार्यक्रम बना लें। और यह काम समयपर ही होना चाहिए। सवाल यही है कि इसमें जल्दी की जा सकती है या नहीं। खादी-प्रतिष्ठानको एक लाभ यह है कि उसके पास ऐसे लोग हैं जिन्होंने अपनेको चरखा-प्रचारके लिए ही अर्पित कर रखा है। उसके पास बड़े व्यवस्था-पटु लोग हैं। एक विख्यात् व्यक्तिका नाम उसके साथ जुड़ा हुआ है। इसलिए उसके पास विस्तारके लिए असीम गुंजाइश है। इसीलिए मैं आमतौरपर सारे भारतका और खास तौरपर बंगालका ध्यान उसकी ओर दिला रहा हूँ। मैं समालोचकोंको आमन्त्रित करता हूँ कि वे उसकी जाँच-पड़ताल करें और जो कमियाँ दिखाई दें उनको प्रकट करें। और सहानुभूति रखनेवालोंसे मेरा कहना यह है कि वे उसके हिसाब-किताबको देखें——जो कि खुली पुस्तक है——और उसकी सहायता करें। जो लोग उदासीन हैं, उनसे मेरा निवेदन है कि वे अपनी उदासीनता छोड़ें, उसके कामकाजका अध्ययन करके या तो उसका विरोध करें या उसकी सहायता करें। एक विज्ञानवेत्ताकी हैसियतसे आचार्य रायकी कीर्ति सारे संसारमें व्याप्त है। परन्तु उनके लाखों देशवासी उन्हें न तो उनके बनाये उम्दा साबुनकी बदौलत और न उनके द्वारा कितने ही बंगाली नवयुवकोंके लिये जुटाये गये जीविकाके साधनोंकी बदौलत जानेंगे——वे उन्हें जानेंगे उस प्रकाश और सुखकी बदौलत जो, उनका खादीका काम लाखों लोगोंके टूटे-फूटे झोंपड़ोंमें पहुँचा सकता है। परमात्मा करे यह संस्था उस विशाल वटवृक्षकी तरह हो, और उन तमाम छोटी-छोटी संस्थाओंकी आश्रयदाता बन जाये जो उससे सहायता और रहनुमाईकी अपेक्षा रखते हों। रासाय- निक कारखाने निश्चय ही महान् हैं। पर खादी-प्रतिष्ठान उनसे भी बढ़कर है, क्योंकि इसकी जड़ देशकी भूमिमें है। कहीं बाहरसे लाकर उसकी कलम नहीं लगाई गई है। उसे पनपानेके लिए और भी एहतियातकी जरूरत है। अगर उसे एक विशाल राष्ट्रीय संस्था बनना है तो उसके कार्यकर्त्ता अपने सर्वोत्तम गुणों और अपनी शक्तियोंको जाग्रत करके उसमें लगा दें। परमात्मा करे वह तमाम आशाओंको पूरा करे जिसके आसार मुझे अभीसे दिखाई दे रहे हैं।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ४-६-१९२५