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दें तो मैं खुशीसे आरोपोंकी जाँच करूँगा और यदि वे सच निकलेंगे तो बिला झिझक दलकी निन्दा करूँगा। मैंने उनसे यह भी कहा कि मैंने पहले भी ये आरोप सुने हैं। मैंने उनकी ओर देशबन्धु दासका ध्यान खींचा भी था। उन्होंने मुझे यकीन दिलाया कि उनमें सत्यांश नहीं है और कहा, यदि आपको खबर देनेवाले लोग बुराई और अपराधियोंके नाम-धाम बतायेंगे तो मैं जरूर उनकी जाँच कराऊँगा। उन्होंने मुझसे कहा कि आम तौरपर ऐसा कहा जाता है; लेकिन हर मामलेमें कानूनी सबूत देना सम्भव नहीं। मैंने उनसे कहा कि इस अवस्थामें तो हमें इसी सुवर्ण-सूत्रका पालन करना चाहिए कि जिस आरोपको सिद्ध नहीं किया जा सकता, हम उसमें विश्वास न करें; नहीं तो किसी भी सार्वजनिक कार्यकर्त्ताकी कीर्ति सुरक्षित न रहेगी।

इस बातचीतके बाद मैं इन अभियोगोंकी सब बातें भूल गया था। पर चाँदपुरमें हरदयाल बाबूने इसी बातको पूरे जोरसे उठाया।[१] मैंने उनकी बातोंपर गम्भीरतापूर्वक विचार नहीं किया; वे भी मुझसे यह उम्मीद नहीं रखते थे। यद्यपि मैं और हरदयाल बाबू एक ही विचारधाराके माननेवाले हैं तथापि देशसेवकों और सार्वजनिक कार्योंको देखनेके मेरे और उनके तरीके जुदा-जुदा हैं। मेरे असहयोगके मूलमें, थोड़ा भी निमित्त हो तो तीव्रसे-तीव्र विरोधीसे सहयोग करनेकी तैयारी रहती है। मैं एक अपूर्ण मर्त्य प्राणी हूँ, और ईश्वरके अनुग्रहपर अवलम्बित रहता हूँ; मेरे नजदीक कोई आदमी ऐसा नहीं जो दोषमुक्त न हो सके। हरदयाल बाबूके असहयोगके मूलमें भीषण अविश्वास और सहयोगकी ओरसे परावृत्त होनेकी वृत्ति है। उन्हें बड़े-बड़े प्रमाणोंकी आवश्यकता है, जबकि मेरे लिये केवल एक संकेत ही काफी है।

पर फिर यह आरोप मेरे सामने एक ऐसे मनुष्यने उपस्थित किया, जिससे उसकी कोई उम्मीद न थी। मेरे कान खड़े हो गये और मैंने संजीदगी अख्त्यार की। मैंने कुछ साधारण-सी पूछताछ शुरू की। पर मेरे कलकत्ता पहुँचनेपर स्वराज्य-दलके मुख्य 'सचेतक' बाबू नलिनी सरकार, बाबू निर्मलचन्द्र, बाबू किरणशंकर राय और बाबू हीरेन्द्रनाथ दासगुप्ताने मेरी चिन्ता दूर कर दी। उन्होंने मेरे पास आकर अपने आप कहा कि वे स्वराज्य-दलकी तमाम कार्रवाइयोंके सम्बन्धमें मेरे सवालोंके जवाब देनेके लिए तैयार हैं। तब मैंने उन तमाम आरोपोंका जिक्र किया, जो मैंने सुने थे। उन्होंने जो बातें मुझसे कहीं, उनसे मुझे पूरा सन्तोष हो गया। उन्होंने तो यह भी कहा, आप और भी जाँच करें और हमारी बहियाँ भी देखें। पर मैंने कहा, जबतक इन आरोपोंके सम्बन्धमें और ज्यादा पक्की जानकारी पेश न की जाये तबतक मैं बहियोंकी जाँच नहीं कर सकता। फिलहाल तो आरोप ही आरोप हैं, उनका सबूत नहीं है। उन्होंने मुझसे कहा कि घूस लेने और नीतिभ्रष्ट होनेके आरोपमें सत्यका अंश भी नहीं है।

मैं उन लोगोंसे, जो जल्दीसे दोषारोपण कर बैठते हैं, प्रार्थना करता हूँ कि वे अपने प्रतिपक्षियोंके सम्बन्धमें जो बातें सुनें उनपर विश्वास न करें। क्या हम नहीं जानते कि खुद सरकारके खुफिया विभागकी कही हुई बातें किस हदतक गलत निकली हैं? क्या हम नहीं जानते कि खुफिया पुलिस बहुत दिनोंतक रानडे और गोखलेतक

  1. देखिए "भेंट : हरदयाल नागसे", १२-५-१९२५ से पूर्व।