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सचाई दूसरोंके सम्मुख सिद्ध नहीं कर सकते, उन्हें अपने ही विश्वासपर दृढ़ रहना चाहिए, भले ही सारी दुनिया उनके खिलाफ हो। मैं उनसे सिर्फ इतना ही आग्रह करूँगा कि वे जरा उन लोगोंके प्रति सहिष्णुता रखें जो मेरी तरह सच्ची बात जाननेके लिए उत्सुक होते हुए भी उसे उसी तरह नहीं देख पाते जिस तरह दूसरे लोग उसे देखते हैं। स्वराज्यवादियोंपर नीति-भ्रष्टताका जो आरोप लगाया जाता है उसकी निस्वत अभीतक मुझे यकीन नहीं हो पाया है। और जो लोग इसके खिलाफ विश्वास रखते हैं उन्हें चाहिए कि वे जबतक मुझे कायल नहीं कर लेते, मेरे प्रति सहिष्णुता दिखायें।

चरखेसे फाँसी पसन्द

बंगालमें एक जगह विद्यार्थियोंसे बातें हो रही थीं। एकने कहा——'आप जानते हैं, हम सूत क्यों नहीं कातते? चरखेमें कोई आवेश देनेवाली बात नहीं है। हमारी शिक्षाने हमें सूत कातने-जैसे कामोंके अयोग्य बना दिया है। हममें बहुत-से लोग सूत कातनेसे मर जाना बेहतर समझते हैं। फांसीपर चढ़कर मरना तो हम खुशी-खुशी कबूल कर सकते हैं; पर हमारे लिए सूत कातना नामुमकिन है। हमें कोई ऐसी वस्तु दें जो भव्य हो। हम लोग विलक्षणताके प्रेमी हैं। चरखेमें यह बिलकुल ही नहीं है।' मैंने उस विलक्षणताके प्रेमी मित्रसे कहा कि चरखेमें जितना आप समझते हैं, उससे कहीं ज्यादा विलक्षणता है। जिस बंगालने बोस और राय उत्पन्न किये हैं आप उसपर अव्यावहारिक और स्वप्नदर्शीके अर्थमें विशुद्ध विलक्षणतावादी होनेका दोष क्यों लगाते हैं? मैंने उनसे कहा कि जो चरखा न कातनेके लिए कोई-न-कोई बहाना निकाल लेते हैं, वे सचमुच देशके प्रेमी नहीं हैं। यदि किसीके बच्चेकी मौतसे रक्षा की जा सकती हो तो क्या वह हास्यास्पद होने पर भी वैद्योंके निर्देशोंका पालन न करेगा ? मैं और मेरे श्रोतागण इस बातको तो मानते हैं कि भारतके लाखों लोग मौतके मुँहमें जा रहे हैं और चरखा ही उनकी घोर कष्टमय दरिद्रताकी समस्याको हल कर सकता है। निश्चय ही मेरी बंगाल-यात्रामें अत्यन्त आश्चर्यजनक और आनन्ददायक अनुभव यह हुआ है कि वहाँ किसी भी दलकी तरफसे कताईका विरोध नहीं किया गया। मुझसे जो लोग मिलनेके लिए आये, मैंने उनसे कहा कि यदि उनका विश्वास चरखेमें न हो तो वे उसका विरोध करें। पर तीन आदमियोंके अलावा, मैंने जिनके तर्कोंका उत्तर कुछ दिन पूर्व दिया था, किसीने विरोध नहीं किया है। और मेरा विरोध करनेवाले वे तीन आदमी भी खादी पहने हुए थे। मैं जहाँ भी गया वहाँ कार्यक्रममें कताई-प्रदर्शन खासतौरसे रखे जाते थे। इनमें बड़े-बड़े जमींदारों और वकील-बैरिस्टरोंको छोट-छोटे बच्चोंके साथ बैठकर सूत कातते हुए देखकर मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई। ऐसी अवस्थामें वह विलक्षणता सम्बन्धी आक्षेप निराधार था। यह दुर्भाग्यकी बात है कि मामूली विद्यार्थियोंमें परीक्षाको छोड़कर अन्य बातोंमें उद्योगकी कोई प्रवृत्ति ही नहीं होती। उन्हें परीक्षामें पास होने के प्रमाणपत्रकी अपेक्षा देशके प्रति सच्चे प्रेमसे उद्योगकी अधिक प्रेरणा मिलनी चाहिए। ज्यामितिके कठिन प्रश्नोंको हल करनेमें या अंकगणितके लम्बे-लम्बे जोड़ और गुणावाले सवाल करनेमें जितनी विलक्षणता है, उतनी ही विलक्षणता सूत कातनेमें भी है। यदि बंगाली विद्यार्थी अपनी परीक्षाओंके विषयमें