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और सच्चे खादीभक्त हैं। इसका कारण यही हो सकता है कि हिन्दू आमिल लोग इतने अधिक पढ़-लिख गये हैं और उन्होंने यूरोपीय तौर-तरीकोंको इतना अपना लिया है कि चरखेके सीधे-सादे सन्देशपर उनका विश्वास नहीं जमता। दूसरे भाई तो अपन विदेशी रेशमके व्यापारमें इतने व्यस्त हैं कि उन्हें खादीकी बात सोचनेकी फुरसत ही नहीं है; तथा मुसलमानोंपर राष्ट्रीय भावनाका अभी इतना प्रभाव हुआ नहीं है कि वे हिन्दुस्तानसे सम्बन्ध रखनेवाली किसी बातको समझें-सराहें। खादीके लिए सिन्ध-जैसे प्रतिकूल वायुमण्डलमें भी जो कुछ लोग खादी पहनने और सूत कातनेका आग्रह रख रहे हैं वे स्तुत्य हैं। मुझे इस बातमें जरा भी शक नहीं कि यदि उनकी श्रद्धा इस अग्नि-परीक्षाके बाद कायम रही तो उसका प्रभाव उच्च और 'सभ्य' आमिलोंपर, अपने ही काममें मगन भाइयोंपर और राष्ट्रीय भावनासे हीन मुसलमान बिरादरोंपर अवश्य ही पड़ेगा।

कुर्गमें खद्दर

एक पत्र-लेखकने लिखा है :

मौजूद खादी-भण्डार केवल दो महीने पहले खोला गया था, उसके लिए शुद्ध खादी हमें तमिलनाड कांग्रेस कमेटीके तिरुपुर वस्त्रालयसे मिलती रही है। अबतक भण्डारने लगभग ५०० रुपयेकी खादी खरीदी और बेची है। इस क्षेत्रमें खादी फैल गई है। कुछ महीने पहले आपको हजारोंमें से भी काफी लोग खादी पहने हुए न मिलते। लेकिन अब कांग्रेस अधिवेशनके बाद आपको काफी प्रतिशत लोग खादी पहने मिलेंगे।
इस समय चरखे खासी बड़ी संख्यामें चल रहे हैं। इस प्रदेशमें हाथकताईकी प्रगतिके लिए एक मजबूत समिति बना दी गई है।

सभी नये केन्द्र खोलनेवालोंका ऐसा ही सुखद अनुभव है। लेकिन कुछ समय बाद वे शिथिल-प्रयत्न हो जाते हैं। हमें आशा करनी चाहिए कि ज्यों-ज्यों समय बीतेगा, कुर्गसे अधिक अच्छे विवरण मिलते जायेंगे। किन्तु इसके लिए कार्यका संगठन सचाईसे करने की जरूरत है।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ४-६-१९२५