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१११. बाढ़-संकट-निवारण

यह मेरे लिए नामुमकिन था कि मैं बंगाल तो जाता, पर वहाँके बाढ़-पीड़ित प्रदेशको और उसमें आचार्य रायकी संकट-निवारण समितिके द्वारा किये जानेवाले कामको न देखता। मेरे लिए यह एक तीर्थ-यात्रा थी, क्योंकि एक तो आचार्य रायसे मेरा परिचय १९०१ से ही है और दूसरे, उन्होंने बड़ी सफलताके साथ यह दिखा दिया है कि चरखा किस तरह संकट-निवारणके लिए एक उपयोगी वस्तु है और भावी संकटके समय किस तरह बतौर एक बीमाके है। यदि देहातके लोगोंको यह बात भली प्रकार समझा दी जाये कि बाढ़ और अकालके मौकोंपर किन तरीकोंसे काम लिया जाना चाहिए और साथ ही वे खेतीके अलावा एक अन्य धन्धेकी भी आदत डाल लें——क्योंकि खेती तो बाढ़ या अकालके समय असम्भव हो जाती है——तो बहुतेरा समय, धन और परिश्रम, जो कि आम तौरपर ऐसे वक्तपर दरकार होता है, बच सकता है। यदि ऐसे मौकोंपर लोगोंको दान या चन्दोंपर जीवित रहना सिखाया जाता है तो एक तो वे अपना आत्मसम्मान खो बैठते हैं और दूसरे अपने अंगोंका उपयोग करना भूल जाते हैं। तब उनमें पस्तीकी भावना घर कर जाती है और अन्तमें उन लोगोंकी हालत पशुओंकी हालतसे भी बदतर हो जाती है। कुछ नहीं तो पशु जीते रहनेमें सुखका अनुभव तो करते हैं; परन्तु इन मनुष्योंको तो जीते हुए मरेके समान समझिए। ऐसी अवस्थामें मैं जितना हो सके खुद अपनी आँखोंसे यह देखना चाहता था कि इस चरखा-दीवाने रसायनाचार्यने बाढ़-पीड़ित प्रदेशोंमें राहत पहुँचानेकी दिशामें क्या काम किया है।

मैं पहले बोगूड़ा और वहाँसे तलोडा गया, जहाँ अपने उस प्रख्यात् देशवासीको मैंने उसके असली रूपमें देखा। उन्होंने कहा, 'यह कुटिया मेरी नजरमें उस आलीशान 'साइन्स कालेज' की अपेक्षा ज्यादा कीमती है। यहाँ मैं अन्य सब जगहोंसे अधिक शान्त और उद्वेगहीन रहता हूँ। और चरखा तो मुझपर अपना रंग दिनपर-दिन जमाता ही जा रहा है। पुस्तकोंके अध्ययनसे थके हुए दिमागको यहाँ खूब आराम मिलता है। 'तलोडा एक छोटा-सा गाँव है, जहाँ संकट-निवारण समितिका एक केन्द्र है। समितिने कोई २० बीघा जमीन खरीदी है और बाँसकी झोंपड़ियाँ बनाकर उनपर छप्पर डाल दिये हैं। आसपासका कुदरती दृश्य बड़ा रमणीय है। पूर्व बंगालमें फसली बुखारका बोलबाला है। प्रकृति अपने नियमोंके उल्लंघनका यह दण्ड दे रही है। मानवने इस भूखण्डको बुखारवाली भूमि तो बना दिया है, पर वह उसके प्राकृतिक सौन्दर्यको नष्ट नहीं कर पाया है।

इस विश्रान्तिदायक स्थानमें मैने संकट-निवारण सम्बन्धी कामोंकी सारी गाथा सुनी। यहाँ जो अभिनन्दन-पत्र मुझे दिया गया उसमें एक भी स्तुतिवाचक विशेषण न था। उसके छ: टाइप किये फूलस्केप पन्ने वस्तुस्थिति और आंकड़ोंके विवरणसे भरे पड़े थे। पाठकोंके लाभार्थ उनका सार यहाँ दिया जा रहा है: