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बाढ़-संकट-निवारण

सितम्बर १९२२ में राजशाही और बोगूड़ा जिलोंमें जबरदस्त बाढ़ आई। उसने उत्तरी बंगालकी कोई ४,००० वर्गमील जमीनको भारी नुकसान पहुँचाया। नुकसान कोई १ करोड़का आँका गया था। पहली कठिनाई तो यह सामने आई कि संकट-निवारण समितिकी व्यवस्था कैसे हो और उसके निमित्त काम करनेवाले जगह-जगह निर्मित अनेक दलोंको एक-सूत्रमें कैसे बाँधा जाये। जिन्हें संकट-निवारणके कामोंका जरा भी ज्ञान है, वे जानते हैं कि खाली सेवा करनेकी इच्छा या केवल रुपयेसे ही काम नहीं चल सकता। उसके लिए ज्ञान और योग्यतांकी भी जरूरत है और उसका प्रायः अभाव पाया जाता है। यथोचित कार्य-प्रणालीके द्वारा दो बुराइयाँ रोकी जा सकीं——एक तो एक ही काम दुबारा करना और दूसरे अकुशल प्रबन्ध। सारा बाढ़पीड़ित प्रदेश ५० केन्द्रोंमें बाँट दिया गया था। इस विशाल संगठनके अध्यक्ष और कोई नहीं श्रीयुत सुभाषचन्द्र बोस थे, जो आज माण्डलेके किलेमें सम्राट्के मेहमान हैं। डॉ॰ इन्द्रनारायण सेनगुप्त उनके सहायक थे। इस समितिने २५,६०६ रुपयेका अनाज और ५५,२०० रुपयेके कपड़े बाँटे। इसके अलावा ८०,००० छोटे थान, ७५,००० पुराने कुरते और जाकिटें बाँटे सो अलग। उसने १,२७४ रुपयेका भूसा और ५२ वेगन चारा भी बाँटा, जो उसे दानमें मिला था। समितिकी देखभालमें १०,००० झोंपड़ियाँ बनाई गई। सामान गाँववालोंको घर-घर पहुँचाया जाता था। मजदूरी-खर्च भी किस्तोंमें दिया जाता था। जब एक बार दी रकम खर्च हो जाती थी और उसकी जाँच होकर सूचना आ जाती थी, तब दुबारा मजदूरी-खर्च दिया जाता था। निगरानी इतनी कड़ी थी कि इतने बड़े काममें सिर्फ तीन बार क्रमश:——१,५०० रुपये, ३५० रुपये और २०० रुपयोंका गबन हुआ था किन्तु उसका भी पता फौरन लगा; लिया गया और रकम वसूल कर ली गई। झोंपड़ियोंकी बनवाईमें १,१२,७५५ रुपये खर्च हुए। कालिकापुरमें सूखी जमीन पुनः आबाद करनेके लिए बाँधकी बहुत बड़ी जरूरत थी। सच पूछिए तो यह काम था जिला-बोर्डका, पर वह उसका बोझ उठानेमें असमर्थ था। सो इस समितिने कोई एक मील लम्बा बाँध बाँधा, जिससे ६००० बीघा जमीनकी हिफाजत हो सकी। उसमें ५,७७५ रुपया खर्च हुआ। फिर धीरे-धीरे जब काम जम गया, समितिने गाँववालोंको कुछ काम देनेकी तजवीज की। उसका मेहनताना उन्हें खाने और कपड़ेके रूपमें दिया गया। उन्हें धान कूटनेका काम दिया गया। कुछ धान प्रत्येक बाढ़-पीड़ित कुटुम्बको दे दिया जाता था। वे लोग चावल कूटकर नियमित नियत-केन्द्रमें ले आते थे। हर कुटुम्बको यह अख्त्यार दे दिया गया था कि वह उसमें से नियत मात्रामें चावल अपने खानेके लिए रख ले। ऐसे १४ केन्द्र चल रहे थे। इन केन्द्रोंसे ४ महीनोंतक २०,००० प्राणियोंको भोजन मिला। ५०,००० मन धानमें से २७,४०० मन चावल मिला। नागा किसीने नहीं किया। इस व्यवस्थामें ४३,००० रुपये खर्च हुए। खाने और कपड़ेके अलावा दवा-दारूकी भी खुलकर मदद की गई।

परन्तु समितिकी आकांक्षा इतनेसे ही पूरी न हुई। उसने कुछ स्थायी काम करके अपनेको जनता द्वारा दी गई रकमके योग्य बनाना चाहा। उसने लोगोंको ऐसे