पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 27.pdf/२३८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२०६
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कष्टके अवसरोंपर स्वावलम्बी और स्वाश्रयी बनाना चाहा। यहाँ मैं अभिनन्दन-पत्रकी भाषामें ही इस बातकी तफसील देता हूँ कि किस तरह उन लोगोंमें चरखेको दाखिल किया गया।[१]

यद्यपि ये परिणाम बहुत बढ़िया हैं, फिर भी पूरा प्रयत्न करनेपर जैसे परिणाम निकलनेकी सम्भावना है, उनको देखते हुए कुछ भी नहीं है। एक ऐसी अवस्था आ जायेगी जब कि रुई लोगोंके दरवाजे ले जानेकी जरूरत न रहेगी, बल्कि वे खुद ही रुई लेकर सामान्यतया अपना सूत बेचा करेंगे, जैसा कि वे बंगालके फेनी जिलेमें तथा पंजाब, राजपूताना और दूसरी जगहोंके कितने ही गाँवोंमें कर रहे हैं। चरखेका संगठन मुझे इतना कामिल नजर आता है कि मुझे इस काममें पूर्वोक्त दिशामें तरक्की करनेके मार्गमें किसी बाधाका अन्देशा नहीं मालूम होता।

इस प्रयोग द्वारा हिन्दू-मुस्लिम एकताकी सच्ची प्रगति भी दिखाई देती है। एक मुख्यतः हिन्दू लोगोंका संगठन मुख्यतः मुस्लिम लोगोंकी बस्तीको इमदाद कर रहा है—— महज उनकी माली हालत दुरुस्त करनेके लिए। उसमें मुसलमान कार्यकर्त्ता भी हैं जिन्हें कभी यह खयाल भी होने नहीं दिया जाता कि वे हिन्दू कार्यकर्त्ता किसी तरह कम उपयोगी हैं। और महज अपनी योग्यताकी बदौलत उनमें से दो कतैये सबसे ऊँचा स्थान प्राप्त किये हुए हैं। मुझे ३२ स्वयंसेवकोंको सूत कातते हुए देखनेका अवसर मिला था। सभी की घंटा ४०० गजसे ज्यादा गतिसे कात रहे थे, परन्तु एक मुसलमान कतैयेने ७२० गज फी घंटेकी गतिसे काता। मैं यह भी बता देना चाहता हूँ कि इन स्वयंसेवकोंको कताई बाजार भावसे दी जाती है। सतीश-बाबूने——जिनकी योजना-शक्तिकी बदौलत यह सारा संगठन हुआ है——मुझसे कहा है कि तजुरबेसे मालूम होता है कि पूरा समय काम करनेवाले स्वयंसेवकोंको, यदि हम उनसे पूरी नियम-निष्ठा चाहते हों तो पूरा मेहनताना देना बेहतर रहता है। ६२ स्वयंसेवकोंको औसतन २५ रुपये मासिक हिसाबसे मेहनताना मिल रहा है।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ४-६-१९२५
 
  1. यहाँ नहीं दिया गया है। उसमें इचमारगांँव, तलोडा, चम्पापुर, दुर्गापुर और तिलकपुर नामक अकाल-पीड़ित स्थानोंमें चरखेके द्वारा पहुँचाई गईं राहतका जिक्र था।