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भाषण : ईसाई धर्मप्रचारिकाओंके समक्ष

काफी नहीं है? यदि आप एक निराश्रित बालकको सँभालें और उसे स्वयं खाने-पीने और पहनने-ओढ़ने लायक बना दें तो इससे अधिक आपको क्या चाहिए? क्या आपके कामका इतना पुरस्कार पर्याप्त नहीं है? अथवा आप जिनकी सेवा करते हैं उनसे झूठ-मूठ ही यह कहलाना चाहते हैं कि "हम ईसाई बन गये हैं।" आज विभिन्न धर्मोमें अपने अनुयायियोंकी गिनतीके सम्बन्धमें होड़ लगी हुई है और वे आपसमें लड़ रहे हैं। इससे मुझे बहुत लज्जा आती है और जब मैं किसी मनुष्यके मुखसे उसका यह पराक्रम सुनता हूँ कि उसने अमुक संख्यामें लोगोंका धर्मपरिवर्तन किया है तब मुझे लगता है कि यह तो कोई पराक्रम ही न हुआ; प्रत्युत यह तो ईश्वर और आत्माका तिरस्कार हुआ।

आपका कार्य इतनेसे ही समाप्त नहीं होता। आपको तो लोगोंके साथ घुलमिल जाना चाहिए। जब आप गरीबसे-गरीब आदमीको गले लगायेंगी तभी आपकी सेवा सच्ची होगी। लॉर्ड सेलिसबरीने पादरियोंके एक शिष्टमंडलसे जो शब्द कहे थे, यहाँ मुझे याद आ रहे हैं। ये पादरी चीनसे आये थे और बौक्सरोंके विरुद्ध सरकारी संरक्षण प्राप्त करना चाहते थे। लॉर्ड सेलिसबरीने उनसे कहा था : "मैं आपको संरक्षण देनके लिए तैयार हूँ, किन्तु क्या आपको यह शोभा देगा? प्राचीन कालमें पादरी वीर थे। वे सच्चा संरक्षण ईश्वरका ही मानते थे। वे जो भी कठिनाइयाँ सामने आती थीं, उनसे जूझते थे और अपने प्राणतक होम देते थे। यदि आपको चीनमें भी धर्म-प्रचार करना आवश्यक प्रतीत होता है तो धर्मभीरु लोग जिस संरक्षणके इच्छुक रहते हैं आपको उस संरक्षणकी खोज करनी चाहिए। वह धर्मप्राण व्यक्ति जो जोखिम उठाते हैं वह जोखिम उठानी चाहिए। आपको यही शोभा देता है।" ये शब्द एक सच्चे और व्यवहारकुशल मनुष्यके हैं। यदि आप भी भारत के लोगोंकी सेवा करना चाहती हैं तो आप भी अपने प्राण हथेलीपर रखकर जूझें। आपको चाहे कितनी ही विफलता क्यों न मिले और चाहे कितनी ही परेशानियाँ तथा असुविधाएँ क्यों न उठानी पड़ें; फिर भी आप केवल सेवाकी भावनासे लोगोंकी सेवा करती रहें।

यदि आप इन कंगालोंमें प्राण-संचार करना चाहती हैं तो मैं आज प्रत्येक भार- तीयके सामने जो कार्यक्रम रख रहा हूँ, उसको आप भी अंगीकार करें और उसके द्वारा जन-जीवनमें प्रवेश करें। ईसाके आदेशोंका पालन जितनी अच्छी तरह इस कार्यसे होगा, उतनी अच्छी तरह किसी अन्य कार्य से नहीं।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २१-६-१९२५