पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 27.pdf/२४७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

११७. बंगालमें

मैं बंगाल नहीं छोड़ सकता और बंगाल भी मुझे नहीं छोड़ता। एक महीना बीत गया है; अभी एक महीना और बिताना होगा। इस दरम्यान असममें भी थोड़े दिनोंके लिए जाये बिना काम न चलेगा। श्री फूकनने मुझे लिखा है, "असमने कुछ अधिक नहीं किया है, फिर भी वह खादीके सम्बन्धमें क्या कर सकता है, आपको उसे यह दिखाने का मौका तो देना ही होगा। आप उसे आखिर एक सप्ताहका समय तो दें ही।" यह सब न लिखा होता तो भी मैं साधारण-सा निमन्त्रण मिलनेपर ही चला जाता, क्योंकि मुझे असमसे बहुत-कुछ आशा है। इसके अतिरिक्त असम इतना दूर है कि वहाँ बार-बार जाना सम्भव नहीं। लेकिन असम जानके अनेक कारणोंमें से सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण कारण तो यह है कि असमने १९२१ में जितना कष्ट सहन और त्याग किया है, उतना किसी दूसरे प्रान्तने शायद ही किया होगा। असमका अपराध यह था कि उसने अफीमबन्दीकी थी। इसके लिए सैकड़ों नवयुवकोंको जेल जाना पड़ा और अनेक अन्य कष्ट सहने पड़े। उसका परिणाम यह हुआ कि लोगोंके मनमें बहुत भय उत्पन्न हो गया, यहाँतक कि वे सिर ऊँचा नहीं कर सकते थे। इस प्रान्तमें जानके लिए तो मुझसे अधिक अनुरोध करनेकी जरूरत न थी। अतः मैंने श्री फूकनके आमन्त्रणको तुरन्त स्वीकार कर लिया। अब मुझे १५ तारीखतक असम पहुँच जाना चाहिए। मुझे वहाँ करीब-करीब दो सप्ताह लगेंगे। मैं फिर वहाँसे वापस आकर बंगालका बाकी दौरा पूरा करूँगा। फिर भी बंगालका कुछ हिस्सा तो छूट ही जायेगा।

मुझसे बंगाल नहीं छोड़ा जाता क्योंकि मुझे बंगालसे बहुत बड़ी आशा है। मैं जैसे-जैसे बंगालियोंके सम्पर्कमें आता जा रहा हूँ, वैसे-वैसे उनकी सरलतापर और उनके त्यागपर मुग्ध होता जा रहा हूँ। मैं जहाँ जाता हूँ वहीं मुझे त्यागी युवक दिखाई पड़ते हैं। उनमें देश-सेवा करनेकी बड़ी उमंग है। वे इसी खोजमें रहते हैं कि देशकी सेवा किस प्रकार की जाये। कुछ काम ऐसी किया जा रहा है, जिसका उल्लेख तक नहीं होता और कभी होगा भी नहीं; क्योंकि उसका वर्णन सरस ढंगसे नहीं किया जा सकता। सरल जीवन स्वतः सरस होता है, लेकिन वह जितना सरस होता है, उसका वर्णन उतना ही नीरस होता है। शुद्ध शान्तिमें सबसे बड़ा सुख होता है। इस शान्तिका, इस सुखका नित्य नया वर्णन कैसे किया जा सकता है? जो मनुष्य एक गाँवमें बालकोंको लेकर बैठ जाता है और उन्हें नित्य पिताकी तरह प्रेमसे पढ़ाता है, उसके सुखका, उसकी शान्तिका वर्णन कौन कर सकता है? उसके सुखकी बराबरी कौन कर सकता है? और उससे उस सुखको कौन छीन सकता है। उसमें नित्य वृद्धि होती जाती है, क्योंकि उसका फल शिक्षणमें ही निहित होता है। वह इस बातकी चिन्ता नहीं करता कि उसके पास एक बालक है या अनेक। उसकी