उसका वर्णन कदापि नहीं कर सकता। मैं उस प्रेमके योग्य बननेका प्रयत्न कर रहा हूँ। उनकी उम्र ८० सालसे भी ज्यादा है। लेकिन वे छोटी-छोटी बातोंकी भी जानकारी रखते हैं। वे यह जानते हैं कि हिन्दुस्तानमें आज क्या चल रहा है। वे दूसरोंसे पत्र पढ़वाकर सुनते हैं और सब जानकारी प्राप्त करते हैं। दोनों भाइयोंने वेदादि ग्रन्थोंका गहन अध्ययन किया है। दोनों संस्कृतके ज्ञाता हैं। दोनों बातचीतमें 'उपनिषदों' के मन्त्रों और 'गीता' के श्लोकोंके उद्धरण बार-बार देते जाते हैं।
शान्तिनिकेतनमें चरखेके पुजारी भी मौजूद हैं। कुछ नियमित रूपसे चरखा चलाते हैं और कुछ अनियमित रूपसे। बहुत-से खादी पहनते हैं। मुझे आशा है कि इस विश्वविख्यात् संस्थामें चरखेको और भी अधिक स्थान प्राप्त होगा।
नन्दिनी बाला
इस बातको तो कुछ ही गुजराती जानते होंगे कि यहाँ कुछ गुजराती बालक रहते हैं। उनमें से कुछ बालकोंके तो कुटुम्ब भी यहीं रहते हैं। इनमें एक भाटिया कुटुम्ब था। उसमें एक कन्याका जन्म हुआ। उसकी माँ बहुत बीमार रही और पागल हो गई। इसलिए गुरुदेवकी पुत्रवधुने उसे गोद ले लिया और अब उसका पालन-पोषण उन्हींके द्वारा हो रहा है। यह कन्या कोई ढाई वर्षकी होगी। वह गुरुदेवकी बहुत लाड़ली है। सब लोग उसे उनकी पौत्री ही मानते हैं। गुरुदेव अभी आराम कर रहे हैं। उन्हें डाक्टरोंने हृदय रोग होनेके कारण चलने-फिरनेकी मनाही कर दी है। वे जिसमें कड़ा परिश्रम हो ऐसा मानसिक काम भी नहीं कर सकते; इसलिए दिनमें तीन-चार बार इस लड़की नन्दिनीसे विनोद करते और उसे अनेक प्रकारकी कहानियाँ सुनाते हैं। यदि वे उसे कहानियाँ नहीं सुनाते तो वह नाराज हो जाती है। वह इसी तरह इस समय मुझसे भी नाराज हो रही है। वह मुझसे फूलोंका हार लेनेके लिए तो तैयार हो गई है; लेकिन मेरे पास आनेसे साफ इनकार कर रही है। हो सकता है कि चूँकि मैं उसके कहानियोंके समयमें गुरुदेवसे बातचीत करता रहा था, इसलिए वह उसका बदला ले रही हो। बालक और राजाकी नाराजीको कौन सँभाल सकता है? यदि राजा नाराज हो तो मेरे-जैसा सत्याग्रही शायद उसे सँभाल भी ले लेकिन बालककी नाराजीके सामने तो मेरा तेजस्वी हथियार भी निस्तेज प्रतीत होता है। इस दरम्यान मौनदिवस आ पहुँचा है। इसलिए मुझे शायद नन्दिनीको जीते बिना ही शान्तिनिकेतनसे जाना पड़े। मैं अपनी इस हारके दुःखकी कहानी किसे सुनाऊँ।
नवजीवन, ७-६-१९२५