पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 27.pdf/२५२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२२०
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

है। यहाँ देव कपासके अतिरिक्त जो कपास होती है वह हमारी मठिया कपाससे घटिया किस्मकी होती है। यहाँ जो औजार काममें लाये जाते हैं वे हमारे औजारोंसे सस्ते होते हैं। मैं कह नहीं सकता कि सस्ते औजार कहीं अन्ततः मँहगे तो नहीं पड़ते।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, ७-६-१९२५
 

११९. एक सलाह

७ जून, १९२५

प्रण उतावलीमें कभी न करो। एक बार करनेके बाद जानकी बाजी लगाकर उसे पूरा करो।

मोहनदास गांधी

अंग्रेजी प्रति (जी॰ एन॰ ८७३५) की फोटो-नकलसे।

 

१२०. पत्र : 'वर्ल्ड' के सम्पादकको

साबरमती
८ जून, १९२५

प्रिय मित्र,

आपकी शुभकामनाएँ और पत्र मिला; तदर्थ धन्यवाद स्वीकार करें। आपने मुझसे कुछ अटकल लगानेको कहा है, मेरी रायमें वह बेमतलबकी अटकलबाजी होगी। वर्तमानको उसके समग्र रूपमें कौन जानता है? हम सब इतना जरूर जानते हैं कि समग्र भविष्य वर्तमानका ही प्रत्यक्ष परिणाम होगा। आवश्यक परिवर्तन यही है कि हम अपने अन्दर विनम्रता पैदा करें और आत्मचिन्तन करें। अपने अहंकार में हम अपना सुधार किये बिना संसारका सुधार करना चाहते हैं। 'आत्मानं विद्धि' आज भी उतना ही सही है जितना अपने पहले-पहल कहे जानेके समय था।

हृदयसे आपका,
मो॰ क॰ गांधी

[अंग्रेजीसे]

महादेवभाईकी हस्तलिखित डायरीसे।

सौजन्य : नारायण देसाई