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१२१. भाषण : जलपाईगुड़ीकी सार्वजनिक सभामें

१० जून, १९२५

श्री गांधीने एक आम सभामें भाषण देते हुए व्यापारियों और व्यवसायियोंसे अनुरोध किया कि वे अपने धनको और व्यवसायको अपनी सूझ-बूझको भारतके कल्याणके लिए इस्तेमाल करें। अभीतक अकेले शिक्षित वर्गने ही भारतकी सेवा की है। अब व्यापारी वर्ग और आम जनताकी बारी है। देशके सामने जो रचनात्मक कार्य है उसके लिए उनकी सम्पूर्ण व्यवसाय-कुशलता और दूरदर्शिता अपेक्षित है, और यदि वे देशके हितमें संलग्न होंगे तो इससे ६० करोड़ रुपया सालानाकी बचत होगी। खद्दरका उत्पादन इतना पर्याप्त होने लगेगा कि सारे देशको वस्त्र सुलभ होगा और विदेशी कपड़ेका पूरा-पूरा बहिष्कार सम्भव हो जायेगा। मेरी रायमें भारतके सात लाख गाँवोंमें से हर गाँव कताई-बुनाईकी ऐसा मिल-जैसा है जो मशीन, श्रम और पूँजीके मामलेमें बिलकुल आत्मनिर्भर है।

[अंग्रेजीसे]
अमृतबाजार पत्रिका, ११-६-१९२५
 

१२२. जलपाईगुड़ीमें स्वयंसेवकोंसे बातचीत[१]

१० जून, १९२५

आप कहते हैं कि सूत कातनेमें कुछ मजा नहीं है। लेकिन मैं आपसे पूछता हूँ कि क्या गायत्री जाप करनेमें कोई मजा है? क्या कलमा पढ़नेमें कोई मजा है? आप उसे कर्तव्यकी तरह——एक पवित्र संस्कारकी तरह करते हैं। उसी तरह सूत कातना भी एक कर्त्तव्य और पवित्र संस्कार है। भारत मर रहा है। वह मृत्युशैयापर है। क्या आपने कभी किसी व्यक्तिको मरते हुए देखा है? क्या आपने उसके पैर छूकर देखे हैं? आप देखते हैं कि उसके पैर ठंडे हो जाते हैं, सुन्न पड़ जाते हैं। उसके सिरमें फिर भी आपको गरमाहट लगती है और आप अपना मन समझा लेते हैं कि अभी उसके शरीरमें जीवन है। लेकिन वह चुक रहा होता है, उसी तरह भारतकी आम जनता अर्थात् भारत माताके चरण ठंडे और सुन्न पड़ गये हैं। यदि आप भारतको बचाना चाहते हैं तो जो कुछ थोड़ा-सा काम करने को मैं कहता हूँ वह अवश्य कीजिए। मैं आपको चेतावनी देता हूँ। समय रहते चरखा शुरू कीजिए, अन्यथा आप विनाशको प्राप्त होंगे।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २५-६-१९२५
  1. महादेव देसाईके यात्रा-विवरणसे उद्धृत।