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१२३. टिप्पणियाँ

एक नई भरती

मेरी प्यारी बेटियोंकी फौज दिन-ब-दिन बढ़ रही है। बेशक उन सबकी रानी तो गुलनार ही है। मैं जब-जब निमन्त्रण मिलनेपर सरकारका मेहमान बनकर गया हूँ तब-तब वही मेरी गैरहाजिरीमें मेरी ओरसे मेरे निरंकुश सिंहासनपर आसीन हुई है। लेकिन छोटी-छोटी तारिकाएँ तो इतनी अधिक हैं कि उन्हें गिनाया भी नहीं जा सकता। अभी उनमें जो एक नई भरती हुई है वह है बर्दवानकी रानीबाला। वह प्यारी लड़की शायद दस वर्षकी होगी। मुझे उसकी उम्र पूछनेकी हिम्मत ही नहीं हुई। मैं उसके साथ सदाकी तरह खेल रहा था और उसकी सोनेकी छः भारी चूड़ियोंको दूसरोंकी निगाह बचाकर देख रहा था। मैंने उसे नरमीसे समझाया कि उसकी छोटी- छोटी कलाइयोंपर ये चूड़े बहुत भारी हैं और उसका हाथ तुरन्त उन चूड़ियोंपर गया। उसके नाना, 'सर्वोन्ट' के श्याम बाबूने, जो सम्पादकके रूपमें ख्याति पा चुके हैं, कहा, "हाँ, ये चूड़े महात्माजीको दे दो।" मुझे खयाल हुआ कि इस उदारताका अर्थ है दूसरेकी हानि। लेकिन श्याम बाबू बोले 'आप मेरी लड़की और दामादको नहीं जानते। मेरी लड़की यह सुनकर कि रानीवालाने अपने चूड़े आपको दे दिये हैं, बहुत खुश होगी। मेरे दामाद तो इन्हें दे ही सकते हैं। वे बड़े उदार हृदयके आदमी हैं और सदा गरीबोंकी बड़ी मदद करते हैं।' वे बोलते जाते थे और रानीबालाको चूड़े उतारनेमें मदद तथा उत्साह देते जाते थे। मुझे यह कबूल करना चाहिए कि मैं इससे थोड़ा चकरा गया था। मैंने तो सिर्फ विनोद ही किया था। मैं छोटी लड़कियोंसे सदा ऐसा ही कुछ विनोद करता हूँ और विनोद-विनोदमें उनके दिलमें ज्यादा गहनोंके प्रति अरुचि और गरीबोंके लिए अपने गहने दे देनेकी इच्छा पैदा करता हूँ। मैंने चूड़े वापस करनेका प्रयत्न किया। लेकिन श्याम बाबूने मुझे ऐसा करनेसे यह कहकर रोक दिया कि उनकी लड़को चूड़े वापस लेनेके कार्यको अपशकुन मानेगी। मैंने उन्हें अपनी शर्त बताई कि लड़की इन चूड़ोंके बदले जो उसने मुझे दे दिये हैं, दूसरे चूड़े न माँगे तो मैं इन्हें ले सकता हूँ। अलबत्ता उसे पसन्द हों तो वह शंखके बने सुन्दर सफेद चूड़े पहन सकती है। लड़की और उसके नाना दोनोंने मेरी यह शर्त स्वीकार कर ली। अस्तु, यह दान उस कुटुम्बके लिए शुभ शकुन था या नहीं, यह मैं नहीं जानता; लेकिन गरीबोंके और मेरे लिए तो वह शुभ शकुन ही था; क्योंकि इसका दूसरोंपर भी भारी असर हुआ और वर्दवानमें स्त्रियोंकी जिस सभामें मैंने व्याख्यान दिया उसमें मुझे लगभग एक दर्जन चूड़े और दो जोड़ी कानोंके वाले बिना माँगे मिले। यह कहनेकी कोई आवश्यकता नहीं कि इनका उपयोग बंगालमें चरखा और खादीके प्रचारके निमित्त किया जायगा। मैं जितनी भी छोटी लड़कियाँ हैं उनको और उनके माता-पिताओंको और उनके बूढ़े दादा-दादियों या नाना-नानियोंको यह बताता हूँ कि जो लड़कियाँ मुझसे