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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

बहुत बड़ी फटकार

एक वकील मित्र अपने पत्रमें लिखते हैं:[१]

यदि इस मित्रका यह मानना कि वे बुननेवाले और कताई-विशेषज्ञ न होनेके कारण सूतकी अच्छाई या बुराई नहीं जान पाते, सच होता तो मेरी उक्तिको 'बहुत बड़ी फटकार' कहा जा सकता था। लेकिन सच बात तो यह है कि सूतका बुनाईके योग्य है या नहीं, यह जानना बड़ा सीधा काम है। मोटे तौरपर देखकर यही बात मालूम हो जायेगी कि सूत एकसार, मोटा-पतला या रोऍदार, कैसा है; और हाथसे जरा खींचनेपर यह पता चल जायेगा कि वह अच्छा वटदार है या नहीं। इसलिए साधारणतया सूतकी अच्छाई या बुराई जाननेके लिए किसीको बुनकर होनेकी जरूरत नहीं है। इसके अलावा जो थोड़ा भी सावधान है, वह बुनकरसे अपना सूत दिखा ले सकता है। हजारों कातनेवाले जो आज अच्छा सूत कात रहे हैं, बुनकर नहीं हैं और बिना कुछ अधिक कठिनाईके अच्छे और बुरे सूतको पहचान लेते हैं। इस पत्रके लेखकने जो सूत भेजा है, वह सम्भवतः आश्रम पहुँच चुका होगा; लेकिन मैं बराबर सफरमें रहा हूँ; इसलिए मुझे नहीं मिला है। लेकिन अब उन्हें मेरे उपरोक्त सुझावको मान लेना चाहिए। जेलमें हमें मिलके कते सूतका दो गजका एक नमूना दिया जाता था और उस नमूनेका सूत कातनेके लिए कहा जाता था। इस प्रकार जो लोग हिदायतोंके बलपर निर्णय नहीं कर सकते वे मिल-कते सूतका, जिस अंकका सूत कातना चाहें, उस अंकका एक नमूना ले लें और उसी अंक और किस्मका सूत कातनेका प्रयत्न करें। अब शायद यह बात साफ हो गई है कि मैंने उन सदस्योंसे जिन्होंने रस्सी-जैसा खराब सूत भेजा था, यह क्यों कहा था कि उनका सूत सूत ही नहीं है। मेरी इच्छा किसी भी कातनेवालेके प्रति अन्याय करनेकी न थी। यह दिखाने के लिए भी मुझे फौरन ही इस बातको स्वीकार कर लेना चाहिए कि खराब सूत भेजनेवालोंमें इन वकील मित्रकी तरह कई लोग ऐसे भी होंगे जिन्हें इसका अधिक ज्ञान नहीं था। लेकिन वे बहुत न होंगे, क्योंकि इन पृष्ठोंमें बार-बार चेतावनियाँ और हिदायतें प्रकाशित की गई हैं और अ॰ भा॰ खादी बोर्डने भी जब सूत उसके पास भेजा जाता था तब पृथक् रूपसे यह सब प्रकाशित किया था।

शालाओंमें कताई

इलाहाबाद नगरपालिकाके स्कूलोंमें कताई शुरू करनेमें जो भारी सफलता मिली है, उसका जिक्र 'यंग इंडिया' में किया जा चुका है। अब पण्डित जवाहरलाल नेहरूने यह रिपोर्ट दी है।

  1. यहाँ नहीं दिया गया है। इसमें पत्रलेखकने 'बुनकरकी शिकायतें' शीर्षक लेखका हवाला देते हुए यह लिखा था: 'मैं आपके इस कथनसे सहमत नहीं हो सकता कि जिस कतैयेका सूत बढ़िया किस्मका नहीं होता, वह लापरवाहीसे या बिना पूरा मन लगाये सूत कातता है और इस प्रकार अपने-आपको और राष्ट्रको धोखा देता है। किसी सदस्यकी सचाई, वह जो सूत कात सका है, उसकी अच्छाई या बुराईसे निश्चित करना, अनुचित होगा। सूतमें जो दोष आ जाते हैं उनका कारण यह हो सकता है कि उसे यह उचित जानकारी न हो कि अच्छे सूतमें कितना बट देना चाहिए।'