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टिप्पणियाँ
लखनऊ, फर्रुखाबाद, बनारस, कानपुर तथा मिर्जापुरके नगरपालिका बोर्ड तथा झांसी, बांदा, बस्ती और आजमबागके[१] जिला बोर्ड अपने स्कूलोंमें कताईकी व्यवस्था कर रहे हैं। ऐसा मालूम होता है कि संयुक्त प्रान्तमें कई स्थानीय निकाय इस बारेमें विचार कर रहे हैं तथा इस विषयमें संयुक्त-प्रान्तीय प्रादेशिक कांग्रेस कमेटीसे लिखा-पढ़ी कर रहे हैं।

मैं इन नगरपालिकाओंको उनके प्रशंसनीय निश्चयपर बधाई देता हूँ। स्कूलोंमें कताई शुरू करनेमें एक गम्भीर अड़चन, जिसकी इलाहाबाद नगरपालिका शिक्षा-विभागने अपनी रिपोर्टमें शिकायत की थी, चरखोंके जल्दी-जल्दी खराब हो जानेकी तथा उनको रखनेके लिए जगह की कमी की भी है। सावधानीसे चलाया जाये तो चरखा खराब नहीं हो सकता। लेकिन जगहकी कमीकी शिकायत सभी शहरोंमें एक बड़ी बाधा है। इसलिए मैं स्कूलोंके अधिकारियोंका ध्यान सुन्दर तकलीकी ओर आकृष्ट करना चाहता हूँ। यह जेबमें रखकर ले जाई जा सकती है, इसे सभी बच्चे एक ही समयमें चला सकते हैं और यह सभी जगह इस्तेमाल की जा सकती है। उदाहरणके तौरपर इलाहाबादके नगरपालिकाके स्कूलोंमें ३,४०० लड़कों और लड़कियोंके चलानेके लिए ३३४ चरखे हैं, लेकिन इनमें से आधे मरम्मतकी आवश्यकताके कारण बेकार रहते हैं। मुझे निश्चय है कि चरखोंसे प्रति लड़का तथा लड़की ४५ मिनटमें १५० गजसे अधिक सूत नहीं काता गया। इसका मतलब है अधिकसे-अधिक ४७,२५० गज प्रतिदिन। इतने समयमें तकलीसे ३० गजसे अधिक सूत न कतेगा। लेकिन पूरे ३,४०० लड़के उसे एक साथ चला सकते हैं। इसलिए तकलीके प्रयोगसे प्रतिदिन १,०२,००० गज अर्थात् चरखेसे तैयार सूतकी मात्राका दुगुना सूत कत जायगा। इसलिए अन्ततोगत्वा स्कूलों तथा ऐसे समूहोंके लिए तकली सूत कातनेका सबसे अच्छा साधन है। तकलीसे सूत कातनेमें पारंगत होनेमें चरखेकी अपेक्षा अधिक समय नहीं लगता। इसलिए मैं सिफारिश करता हूँ कि इलाहाबाद नगरपालिकाके स्कूलोंमें तकली तुरन्त अपनाई जाये। अधिकारी उन विशेष छात्रोंके लिए जो विशेष समय उसके लिए देना चाहते हों तथा बहुत मात्रामें सुत उत्पादन करनेके लिए उत्सुक हों, चरखे कायम रख सकते हैं।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ११-६-१९२५
 
२७–१५
  1. यहाँ आजमगढ़ होना चाहिए।