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यह पुरुषोंका काम नहीं?

यह पत्र काफी बड़ा था, लेकिन मैंने उसके तर्कका सार प्रस्तुत कर दिया है, पर उसकी भाषा नहीं बदली है। यह तो स्पष्ट है कि ये विद्वान् प्रोफेसर हिन्दुस्तानकी स्त्रियोंकी हालतसे परिचित नहीं हैं। अगर वे परिचित होते तो उन्हें यह भी खबर होती कि साधारण तौरपर पुरुषोंको स्त्रियोंसे अपनी बात कहनेका सौभाग्य या मौका ही नहीं मिलता। अलबत्ता मेरे सद्भाग्यसे कुछ अंशतक मैं उन्हें अपनी बात सुनानेमें समर्थ हो सका हूँ; लेकिन अनेक सुविधाएँ सुलभ होनेपर भी मेरा सन्देश जितना पुरुषोंतक पहुँच सका है उतना स्त्रियोंतक नहीं पहुँच पाया है। प्रोफेसर साहबको यह भी मालूम होना चाहिए कि स्त्रियाँ पुरुषोंकी इजाजत लिये बिना कुछ भी नहीं कर सकतीं। मैं ऐसे बहुत-से उदाहरण पेश कर सकता हूँ कि जिनमें पुरुषोंने स्त्रियोंको चरखा और खादी ग्रहण करनेसे रोका है। तीसरी बात यह कि जो ईजाद और तबदीली पुरुष कर सकते हैं वह स्त्रियाँ नहीं कर सकतीं। यदि कताई-आन्दोलन सिर्फ स्त्रियोंतक ही सीमित रहा होता तो गत चार वर्षोंमें चरखेमें जो सुधार हुए हैं और जिस प्रकारका संगठित रूप आज उसे मिल सका है, वैसा न मिल पाता। चौथे, किसी भी कामके बारेमें यह कहना कि वह स्त्रियोंका ही है या पुरुषोंका ही है, अनुभवके विरुद्ध पड़ता है। खाना-पकाना मुख्यतः स्त्रियोंका ही काम है। लेकिन जो सिपाही खाना नहीं पका सकता वह किसी भी कामका नहीं है। लड़ाईकी छाव- नियोंमें खाना पकानेका सभी काम पुरुष ही करते हैं। घरमें तो स्वभावत: स्त्रियाँ ही खाना पकाती हैं; लेकिन बहुत बड़े पैमानेपर व्यवस्थित तौरसे खाना पकानेका काम तो सारे संसारमें पुरुष लोग ही करते हैं। लड़ाईमें लड़ना मुख्यतया पुरुषोंका ही काम है लेकिन इस्लामके प्रारम्भिक युद्धोंमें अरब स्त्रियाँ अपने पतियोंके साथ खड़ी होकर बहादुरोंकी तरह लड़ी थीं। गदरके दिनोंमें झाँसीकी रानीने अपनी बहादुरीके लिए जो नाम पाया वह बहुत ही थोड़े-से पुरुषोंको नसीब हो सका। और आज यूरोपमें हम स्त्रियोंको वकालत, डाक्टरी और प्रशासन-कार्य खूबीसे करते देख-सुन रहे हैं। बाबूगिरीका धन्धा तो आशुलिपि और टाइपिंग जाननेवाली स्त्रियोंने करीब-करीब अपने ही कब्जेमें कर लिया है। कातना पुरुषोचित काम क्यों नहीं है? जो काम हिन्दुस्तानकी आर्थिक और आध्यात्मिक उन्नति कर सकता है (और प्रोफेसरके मतानु- सार चरखा ऐसा कर सकता है।) वह पुरुषोंके लिए काफी पुरुषोचित क्यों नहीं है? क्या प्रोफेसर महोदय यह नहीं जानते कि पहले-पहल जिसने कताईकी मशीनका आविष्कार किया वह पुरुष ही था। यदि उसने उसकी ईजाद न की होती तो आज मनुष्यका इतिहास कुछ और ही प्रकारसे लिखा गया होता। सिलाई और सूईका काम तो मुख्यतया स्त्रियोंका ही है, लेकिन संसारके प्रख्यात् और अच्छेसे-अच्छे दर्जी सब पुरुष ही हैं। और सिलाईकी मशीनका आविष्कारक भी पुरुष ही था। यदि सिंगरने सूईका तिरस्कार किया होता तो आज वह मानव समाजके लिए यह विरासत न छोड़ गया होता। यदि गत वर्षोंमें औरतोंके साथ-साथ पुरुषोंने भी कताईपर ध्यान दिया होता तो कम्पनी सरकारके दबानेपर हमने आज जो कताईका काम छोड़ दिया है वैसा कभी न छोड़ा होता। राजनीतिज्ञ लोग, जितना चाहें, शुद्ध राजनीतिका काम