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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


करनेमें अपनेको लगा सकते हैं। लेकिन यदि करोड़ोंके सम्मिलित प्रयत्नसे हमें अपने तन ढकने लायक कपड़ा आप तैयार करना है तो राजनीतिज्ञको, कवि–पण्डित–सभीको, फिर वह स्त्री हो या पुरुष, हिन्दू हो या मुसलमान या ईसाई या पारसी या यहूदी हो, उसे देशके लिए धर्मभावनाके साथ आधा घंटा अवश्य ही कातना चाहिए। मानवताका धर्म किसी एक वर्गका यानी केवल स्त्रियोंका या केवल पुरुषोंका ही अधिकार नहीं है, वह तो सभीका अधिकार है, फर्ज है। हिन्दुस्तानका मानवधर्म उन सब लोगोंसे जो अपनेको हिन्दुस्तानी कहते हैं इस बातकी अपेक्षा रखता है कि वे कमसे-कम आध घंटा नित्य अवश्य कातें।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ११-६-१९२५

१२५. आयुर्वेदिक चिकित्सा-प्रणाली

कविराज गणनाथ सेन लिखते हैं:

मैं इस बातकी ओर आपका ध्यान दिलाता हूँ कि अष्टाँग आयुर्वेद विद्यालयकी[१] नींव रखते समय आपने जो भाषण दिया था उसका कलकत्ताके वैद्योंने, और जन-समाजने भी बड़ा ही गलत अर्थ लगाया है। क्या आपसे यह निवेदन कर सकता हूँ कि आप बराय मेहरवानी इस बातको स्पष्ट करें कि आपका मतलब आयुर्वेद और सच्चे दिलसे उसको माननेवालोंकी निन्दा करनेका नहीं था। आपने तो उस वर्गकी निन्दा की है जो लोगोंको धोखा देकर इससे आजीविका प्राप्त कर रहा है। मुझे तो यह अत्यन्त आवश्यक मालूम होता है, क्योंकि करीब-करीब तमाम बंगाली अखबारोंने उस भाषणका दूसरा ही अर्थ किया है और उनका प्रतिवाद न करनेके कारण वे हम लोगोंको दोष दे रहे हैं।

मैं सेन महोदयके सुझावको बड़ी खुशीके साथ स्वीकार करता हूँ। ऐसा करनेका एक बड़ा कारण यह है कि मुझे इससे आयुर्वेद-सम्बन्धी अपने विचारोंको प्रकट करनेका मौका मिलता है।

मुझे शुरूआतमें ही यह कह देना चाहिए कि जिस कारणसे तिब्बिया कालेजका उद्घाटन करनेके सम्बन्धमें मैंने अनिच्छा प्रकट की थी वही कारण इस संस्थाकी नींव रखनेके बारेमें भी था। वह कारण है चिकित्सा-पद्धति सम्बन्धी मेरे सामान्य विचार, जो मैंने 'हिन्द-स्वराज्य' में प्रकट किये हैं। १७ वर्षके अनुभवके बाद भी, आज उनमें कोई बड़ा अन्तर नहीं आया है। यदि आज मैं उस पुस्तकको फिर लिखूँ तो मुमकिन है कि मैं उन्हीं विचारोंको कुछ दूसरी ही भाषामें लिखूँगा। लेकिन जिस तरह मैं अपने दिली दोस्त हकीम साहबको इनकार न कर सका, उसी तरह मैं इस दौरेके प्रबन्धकोंकी बात भी टाल न सका। परन्तु मैंने उनसे यह कह दिया था कि मेरा भाषण उन्हें प्रतिकूल-सा मालूम होगा। यदि मैं इस प्रकारके अनुष्ठानके सर्वथा

  1. देखिए "भाषण: अष्टसँग आयुर्वेद विद्यालयके शिलान्यास-समारोहमें", ६-५-१९२५ ।