१२६. पत्र : जमनालाल बजाजको
नवाबगंज जाते हुए
ज्येष्ठ बदी ५ [११ जून, १९२५][१]
चि॰ मनहरसे जो पत्र लिखाया था वह तुम्हारे पास है, यह जानकर मुझे बहुत खुशी हुई। कार्यसमितिकी बैठकमें इच्छा होनेपर आनेकी बात बिलकुल ठीक है। मुझे खास जरूरत होगी तो बुला लूँगा। अभी आचार्यकी[२] खोजमें हूँ ही। मैं १६ जुलाईके बाद मध्य प्रदेशको एक महीना दूँगा। मुझे अमरावती और अकोलाकी नगरपालिकाओंके पत्र मिले हैं; प्रेषकोंके नाम तो याद नहीं हैं। जहाँ जाना जरूरी हो वहाँ जानेका कार्यक्रम रखना। पहले तो एक सप्ताह वर्धामें शान्तिसे बितानेकी इच्छा है। वह तो दार्जिलिंगमें जैसा बीता उससे भी अधिक शान्तिका समय माना जाना चाहिए। उसके बाद दौरा शुरू किया जाये। यहाँ १६ जुलाईतक का कार्यक्रम तो है ही। इस १८ को कलकत्तेसे असम जाऊँगा और वहाँसे २ जुलाईको कलकत्ता दूँगा। तुमने तो बहुत सूत काता है।
बापूके आशीर्वाद
मूल गुजराती पत्र (जी॰ एन॰ २८५३) की फोटो-नकलसे।
१२७. पत्र : वसुमती पण्डितको
ज्येष्ठ सुदी ५ [११ जून, १९२५][३]
तुम्हारे पत्र बराबर मिलते रहे हैं। मैं तुम्हें प्रति सप्ताह एक पत्र तो लिखता ही हूँ। और तुम्हारा पत्र आता है तो उत्तर भी देता हूँ। तुम जब दुकानके कामसे मुक्त हो जाओ तब मैं चाहता हूँ कि कुछ दिनों विश्राम करो। यदि तुम्हें आश्रमका वातावरण अच्छा लगे तो वहीं शान्तिसे रहो। जानकी बहन और जमनालाल दोनों बहुत पवित्र व्यक्ति हैं। जमनालालजी तो बहुत-सी विधवा बहनोंको आश्रय देना चाहते हैं। यदि तुम्हारा शरीर कुछ सबल हो जाये तो मैं तुमसे बहुत काम लेना चाहता हूँ। उसके लिए तुम्हें स्थिर होकर रहनेकी आवश्यकता होगी। मुझे तो