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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

आश्रममें पहुँचनेमें अभी तीन मास लगेंगे। वक्त इससे ज्यादा तो लग सकता है, कम नहीं। मैं यह पत्र स्टीमरपरसे लिख रहा हूँ।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती पत्र (सी॰ डब्ल्यू॰ ४६३) की फोटो-नकलसे।

सौजन्य : वसुमती पण्डित

 

१२८. भाषण : नवाबगंजके विद्यार्थियोंके समक्ष[१]

११ जून, १९२५

आप सब सूत कातते और खद्दर पहनते हैं, लेकिन मुझे यह बताइये कि आपमें से कितने हमेशा सच बोलते हैं और कभी झूठ नहीं बोलते?

कुछ लड़कोंने अपने हाथ उठा लिये।

अच्छा तो अब यह बताइये कि आपमें से कितने कभी-कभी झूठ बोलते हैं?

दो लड़कोंने तुरन्त अपने हाथ उठा दिये, फिर तीन, फिर चार और अन्तमें लगभग सभीने हाथ उठा दिये।

धन्यवाद, आपमें से जो जानते हैं और स्वीकार करते हैं कि वे कभी-कभी झूठ बोलते हैं, उनके लिए हमेशा आशा रहेगी। जो यह समझते हैं कि वे कभी झूठ नहीं बोलते, उनका मार्ग कठिन है। मैं दोनोंकी ही सफलताकी कामना करता हूँ।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २५-६-१९२५

१२९. सम्मति : दर्शक-पुस्तिकामें[२]

१२ जून, १९२५

मुझे यह देखकर बहुत खुशी हुई कि पिछले चार सालोंसे यहाँ सूत कातना अनिवार्य विषय रहा है। कताईकी असफलतापर इन्स्पेक्टरकी टिप्पणियाँ मैंने पढ़ी हैं। मेरे विचार सर्वथा विपरीत हैं, लेकिन मैं जानता हूँ कि कताईको यदि मुनाफेका नहीं तो सर्वथा स्वावलम्बी काम तो बनाया ही जा सकता है। इसके लिए मैं निम्नलिखित सुझाव रख रहा हूँ :

(१) मौजूदा शिक्षकोंको कोई इनाम रखकर या तनख्वाहमें भी थोड़ी बढ़ोतरीका वचन देकर कताईकी कला और शास्त्र सीखनेके लिए प्रेरित करना चाहिए।

(२) लड़कोंके काते हुए सूतकी हमेशा जाँच की जानी चाहिए और सूतके कस तथा उसके नम्बरकी पर्ची साथमें लगा दी जानी चाहिए।

  1. महादेव देसाईंके यात्रा-विवरणसे उद्धृत।
  2. बिझारी स्कूल, उपाशी, नवाबगंजकी दर्शक-पुस्तिकांमें। इस स्कूलमें अनिवार्य विषयोंके रूपमें कताई और बुनाईकी शिक्षा देनेका प्रयोग किया जा रहा था।