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पत्र : मणिवहन पटेलको


(३) लड़कोंको अपने काते हुए सूतकी किस्म उत्तरोत्तर अच्छी बनानेके लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

(४) सूत मौजूदा कताई-संस्थाओं, जैसे खादी-प्रतिष्ठानको तयशुदा दामपर, जो हमेशा कपासके दामसे ज्यादा हो, बेचना चाहिए। उस कामके लिए कपास हमेशा उसी संस्थासे लेनी चाहिए।

(५) मेरा पक्का खयाल है कि बुनाई विभाग रखना बिलकुल ही जरूरी नहीं है और उसे तभी रखना चाहिए जब उससे बुनाई मास्टरकी तनख्वाह निकाली जा सके। मुझे इस सम्बन्धमें यह वचन पाकर खुशी हुई है कि विदेशी अथवा मिलका सूत अब आगेसे बिलकुल भी काममें नहीं लाया जायेगा।

(६) धुनाईपर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए और बालकोंको यह काम स्वयं करना आना चाहिए।

(७) चरखे बड़ी कर्कश आवाज करते हैं, यह विचित्र बात है। ऐसी आवाज अच्छी तरह कातनेमें अवश्य ही बाधक होती है, यह दूरकी जा सकती है। यह तो होनी ही नहीं चाहिए। किन्तु यह केवल तभी हो सकता है जब कताई मास्टर कताईका शास्त्र जानता हो। इसमें चरखेकी मरम्मतका काम तो आता ही है। जब चरखे ठीक तरहसे काम करते हैं तो वे एक संगीत पैदा करते हैं जो कानोंके लिए सुखकर होता है। चरखे त्यागका पाठ पढ़ानेके अतिरिक्त बालकोंके लिए आनन्ददायक भी बन सकते हैं।

मैं समिति और शिक्षकों को उनके इस प्रयोगके लिए बधाई देता हूँ और उनकी पूरी-पूरी सफलता चाहता हूँ।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २५-६-१९२५

१३०. पत्र : मणिबहन पटेलको

शुक्रवार, ज्येष्ठ बदी ६ [१२ जून, १९२५][१]

चि॰ मणि,

तुम्हारा पत्र मिल गया है। मैं आज तो जहाजमें हूँ। चूड़ियाँ कलकत्तेमें हैं। मुझे वहाँ १८ तारीखको पहुँचना है। वहाँ पहुँचनेपर उन्हें पार्सलसे भेज दूँगा। परन्तु देवदास आश्रममें न आया हो तो भी पूछताछ कर लेना। उसके नाम आया पार्सल अवश्य रखा होगा, तुम उसे ले लेना।

डाह्याभाईने खेतीका काम पसन्द किया था। मैंने उसे यह सलाह उसीके हितको ध्यानमें रख कर दी थी। परन्तु उसका मन विदेश जानेका ही हो तो मैं उसे रोकना नहीं चाहता। विदेश जानेमें मेरे लिए एक बड़ी कठिनाई यह है कि मुझे किसीसे रुपया माँगना पड़ेगा। कोई उत्साहसे रुपया दे तो भी जहाँतक हो सके हम न लें,

  1. साधन-सूत्रके अनुसार।