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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

यह आदर्श है। इस आदर्शपर टिके रहने की हमारी शक्ति न हो तो किसीसे मदद लेकर जानेमें भी कोई आपत्ति नहीं। मुझे वहाँ आनेमें अभी कुछ समय लगेगा। मैं अभी १६ जुलाईतक बंगालमें हूँ। डाह्याभाई यहाँ आना चाहे तो आ जाये और बात कर जाये अथवा आश्रममें आनेपर करना चाहे तो तब कर ले। हमें उसे किसी भी तरह दुखी नहीं करना चाहिए। मैं उसकी जैसी इच्छा हो वैसा ही करना और मृदुल भावसे उसका मार्गदर्शन करना चाहता हूँ। तीन रास्ते हैं :

१. खानगी नौकरी करना,

२. खेती करना और

३. अमरीका जाकर उच्च शिक्षा प्राप्त करना।

वह इनमें से जो करना चाहे सो करे। उसमें मुझे कोई आपत्ति नहीं। चौथा रास्ता राष्ट्रकी सेवाका है। किन्तु वेतन लेकर राष्ट्रकी सेवा करना उसे पसन्द नहीं, इसलिए मैंने वह रास्ता नहीं गिना। क्या उसकी रुचि चिकित्साके अध्ययनमें है? यदि हो तो यहाँ राष्ट्रीय चिकित्सा कालेज है और दिल्लीमें भी एक वैसा ही कालेज है। डाह्याभाई न जानता हो तो उसे बताना। यहाँ (कलकत्ते) का कालेज अच्छा माना जाता है। उसे उसमें अध्ययन करना हो तो वह कर सकता है।

मेरा स्वास्थ्य बहुत अच्छा है। कोई दूसरी खराबी तो नहीं हुई, बीचमें कुछ सर्दी लग गई थी। लोग हर जगह पूरा-पूरा आराम देते हैं।

...को[१] नियमपूर्वक पत्र लिखती रहना। इससे उसे सन्तोष मिलता है।...[२] प्रेमका भूखा है।

बापूको सेवा भली-भाँति करना। जब माँ मर चुकी हो, बाप बहुत-सी बाहरी झंझटों में फंसा हो, यदि बच्चे सेवाभावी हों तो वे अपनी सेवासे पिताके सब दुःखोंको भुला देते हैं। यह मैं एक आज्ञाकारी पुत्रके रूपमें प्राप्त अपना अनुभव तुम भाई-बहनोंको बता रहा हूँ। इससे बच्चोंका कितना कल्याण होता है, मैं इसका साक्षी भी हूँ। मैं माँ-बापको परमेश्वर की तरह पूजनेका फल प्रतिक्षण भोग रहा हूँ। मैं तुम दोनोंको यह सब इसलिए लिख रहा हूँ, क्योंकि मैं जानता हूँ कि बापूपर बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। मैं तो उसे बँटा नहीं सकता। मैं तो पत्र लिखनेका समय भी नहीं निकाल पाता; इसलिए अपनी जिम्मेदारी भी तुमपर डाल रहा हूँ।

अपने स्वास्थ्यकी खूब सँभाल रखना। पढ़नेमें अधिक समय जाये तो चिन्ता न करना। महादेव कहते थे कि तुम दोनों भाई-बहनोंके अंग्रेजी शब्दोंके हिज्जे बहुत कच्चे हैं। अपनी यह कमी दूर कर लेना। हम जो भी सीखें अच्छी तरह ही सीखें। जहाँ भी शंका हो, वहाँ शब्दकोष देखना। ज्यादा कुछ करने की जरूरत नहीं रहती।

बापूके आशीर्वाद

[गुजरातीसे]
बापुना पत्रो—४ : मणिबहेन पटेलने
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