१३४. भाषण : मदारीपुरके सार्वजनिक पुस्तकालयमें
१३ जून, १९२५
अभिनन्दन-पत्रके जवाबमें महात्माजीने कहा कि अभी भेंट किये गये अभिनन्दन-पत्रसे मुझे बड़ी खुशी हुई है। मैं इसके लिए अवैतनिक सचिवको धन्यवाद देता हूँ। उन्होंने उस लड़कीकी बहुत तारीफ की जिसने उस बाँसकी मंजूषाको रंगीन खद्दर और स्थानीय हाथकते सूतसे सजाने-संवारनेमें इतना श्रम किया। उन्होंने कहा कि सचिवन मुझे जो संक्षिप्त विवरण दिया उससे यह जानकर खुशी हुई कि पुस्तकालयमें काफी संख्यामें पुस्तकें हैं और काफी संख्यामें लोग प्रतिदिन वहाँ सुलभ पुस्तकें, पत्रिकाएँ और समाचारपत्र पढ़ने आते हैं। लेकिन मैं यह जानना चाहता हूँ कि इन पुस्तकों आटिके पढ़नेसे उनको वास्तवमें किस तरहका लाभ होता है। महात्माजीने आगे कहा कि जो भी हो इतना तो स्पष्ट है कि अब पुस्तकालय हमारे नित्यके जीवनके लिए अपरिहार्य हो गये हैं। उन्होंने कहा कि ये पुस्तकालय हमारे जीवनका अभिन्न अंग बन गये हैं और इस बातसे मुझे सन्तोष हुआ कि इस पुस्तकालयमें तरह-तरहके समाचार-पत्र और पत्रिकाएँ हैं। इसके बाद महात्मा गांधीने सार्वजनिक पुस्तकालयोंका महत्त्व बतलाया और पुस्तकोंके चयनपर खास जोर दिया।[१] महात्माजीने अभिनन्दन-पत्र तथा भेंट की गई सुन्दर मंजूषाके लिए अवैतनिक सचिवको फिर एक बार धन्यवाद देकर लोगोंसे विदा ली।[२]
अमृतबाजार पत्रिका, १८-६-१९२५