पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 27.pdf/२७१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

१३५. अन्त्यजोंके सम्बन्धमें

एक स्वयंसेवकने मुझसे कुछ सूक्ष्म प्रश्न पूछे हैं। वे उपयोगी हैं इसलिए यहाँ दिये जा रहे हैं :[१]

पहला प्रश्न है :[२]

जहाँ परिषद् अन्य सदस्य ठहरे हों, वहाँ अन्त्यज सदस्य न ठहर सकें तो यही माना जायेगा कि अस्पृश्यताका निवारण नहीं हुआ है। जिस बातकी स्वतन्त्रता चारों वर्णोंको हो उसकी छूट अन्त्यज भाइयोंको भी अवश्य होनी चाहिए। जहाँ अन्त्यज सदस्य न ठहर सकें, दूसरे सदस्योंका कर्त्तव्य है कि वे वहाँ न ठहरें।

दूसरा प्रश्न है[३] :

जिस प्रकार दूसरे वर्णोंके लोग मर्यादासे एक पंक्तिमें बैठते हैं उसी प्रकार अन्त्यज भाइयोंको भी बैठनेका अधिकार है। किन्तु वैष्णव भाईकी आलोचनाके बाद यह स्वयंसेवक विनयपूर्वक दूसरी जगह जाकर बैठ गया, यह बहुत ठीक किया। शिष्टताका तकाजा है कि सभा सम्मेलनोंमें बहुमतके सामने अल्पमतको अपना आग्रह छोड़ देना चाहिए। किन्तु इस उदाहरणमें उक्त भाईने केवल एक ही वैष्णवकी आपत्तिको मानकर तदनुसार आचरण किया, यह विशेष रूपसे स्तुत्य है। किसीको जबर्दस्ती अपने मतके अनुसार चलाना हमारा धर्म नहीं है। हमारा धर्म अन्त्यज भाइयोंकी सेवा और रक्षा करना है। इसलिए हम जिन कठिनाइयोंको दूर न कर सकें हमें उनको स्वयं ही बर्दाश्त कर लेना चाहिए।

तीसरा प्रश्न है[४] :

जहाँ पग-पगपर अन्याय होता हो वहाँ हम जितने अन्यायका निवारण कर सकें उतनेका निवारण करें। हम कोई भी कदम उठायें उसमें कुछ-न-कुछ कमी तो रह ही जायेगी। इसलिए जरूरी हो जानेपर ऐसा कदम ही उठाना चाहिए, जिसमें कमसे कम अन्याय होता हो।

  1. यहाँ नहीं दिये गये हैं।
  2. प्रश्न यह था कि क्या परिषद्के अवसरपर अन्त्यज सदस्योंको अपने साथ ठहरानेका ध्यान रखना प्रतिनिधियोंका कर्त्तव्य नहीं था।
  3. यह प्रश्न भोजनके समय सवर्णोंके साथ उन प्रतिनिधियोंके बैठनेसे सम्बन्धित था, जो अस्पृश्यतामें नहीं मानते थे।
  4. इसमें कहा गया था कि आप सौराष्ट्रके अपने दौरेमें कई बार ऐसे स्थानोंमें ठहर जाते हैं जहाँ अन्त्यजोंको प्रवेश नहीं मिल सकता, और इस खामीकी पूर्तिके विचारसे आप अन्त्यजोंके मुहल्लोंमें जाकर सभा करते हैं, पर जो अन्त्यज उस समय वहाँ आपसे नहीं मिल पाते, वे मिलनेसे ही रह जाते हैं। क्या यह उनके प्रति अन्याय नहीं हुआ?