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पत्र : मोतीलाल नेहरूको

तीयकी सालाना औसत आय ३० रु० है, पर हमारे हिसाबसे २६ रु॰ ही है। और यदि आम जनताकी औसत आय यही है तो इसमें से उच्च वर्गोंकी आय निकाल देनेपर आम जनताकी वास्तविक आय और भी कम बैठेगी। फिर यदि सूत कातकर आप इस आयमें १० रु॰ और जोड़ सकें तो क्या यह उन लोगोंके लिए एक बड़ी बात नहीं होगी? आपको तो ५ रुपयेसे शायद कोई अन्तर न पड़े, पर जो बिलकुल खाली हाथ हैं, उनके लिए तो पाँच रुपये एक बड़ी रकम है।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २५-६-१९२५

१४०. पत्र : राजा महेन्द्र प्रतापको

[१५ जून, १९२५ या उससे पूर्व][१]

आप मुझे जब-तब लिखते रहे हैं। मैं जानता हूँ कि जीवनके बारेमें हमारे दृष्टिकोण भिन्न-भिन्न हैं। मैं जानता हूँ कि जितने लोग हैं उतने ही सोचनेके तरीके हैं। लेकिन जैसे एक ही समयमें, एक ही परिस्थितिमें और एक ही जगहपर सर्दी और गर्मीका साथ-साथ रहना सम्भव नहीं, इसी तरह एक ही समय, स्थान और एक ही परिस्थितिमें हिंसा और अहिंसाका एक साथ रहना असम्भव है।

हृदयसे आपका,
मो॰ क॰ गांधी

[अंग्रेजीसे]

महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे।

सौजन्य : नारायण देसाई

१४१. पत्र : मोतीलाल नेहरूको

बारीसाल
१५ जून, १९२५

प्रिय पण्डितजी,

आपके पत्रमें जवाहरको फिरसे बुखार आनेकी बात पढ़कर मुझे बड़ा संताप हुआ। आशा है कि पत्र लिखनेके बाद आप दोनों शीघ्र ही स्वस्थ हो गये होंगे और अब स्फूर्तिदायक जलवायुका आनन्द ले रहे होंगे।

ख्वाजाके[२] सम्बन्धमें मैंने आपको तार[३] दे दिया है। वे मुझे जिम्मेदारी सौंपनेकी गलती कर रहे हैं। लेकिन अगर उन्हें यह करना ही हो तो मैं क्या कह

  1. साधन-सूत्रके अनुसार।
  2. जामिया मिलिया इस्लामिया, अलीगढ़के ए॰ एम॰ ख्वाजा।
  3. यह तार उपलब्ध नहीं है।