पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 27.pdf/२८५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२५३
टिप्पणियाँ

सरदारजी इस बातका जरा भी अन्देशा न करें कि एकताके दायरेसे अंग्रेज लोग अलग रखे जायेंगे। क्योंकि उसमें वे सब लोग आ जाते हैं जो अपनेको भारतवासी कहलाना पसन्द करते हैं——फिर वे चाहे यहीं जन्मे हों, चाहे उन्होंने भारतको अपने देशके रूपमें अपना लिया हो। उसमें तमाम जातियों और पंथोंका समावेश है। और इस एकताका उद्देश्य किसी राष्ट्र या व्यक्तिका——यहाँतक कि किसी डायरका भी अहित करना नहीं है। इसका लक्ष्य तो लोगोंके विचारोंमें परिवर्तन करना है, उन्हें मिटा देना नहीं।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २५-६-१९२५
 

१४५. टिप्पणियाँ

[१६ जून, १९२५ या उससे पूर्व]

दार्जिलिंगमें चरखा

यदि देशबन्धु दास दार्जिलिंगमें न होते तो मैं शायद ही वहाँ जानेका इरादा करता——हालाँकि वहाँके बरफीले पहाड़ोंकी श्रृंखला बड़ी सुहावनी और लुभावनी है। मैंने तो खयाल किया था कि दार्जिलिंगके उच्चवर्गीय लोगोंको चरखेका सन्देश सुनाना निरी मूर्खता होगी। पर मेरा यह डर बिलकुल गलत निकला। वहाँ मुझे एक स्त्रियोंकी सभामें व्याख्यान देनेका सौभाग्य प्राप्त हुआ था। उन्होंने चरखेका सन्देश हमदर्दीके साथ सुना। स्वर्गीय व्योमेशचन्द्र बनर्जीकी पुत्री, श्रीमती ब्लेयर, वहाँकी उच्चवर्गीय स्त्रियोंको कताई सिखानेके लिए एक वर्ग खोलनेवाली थीं। मुझे पादरियोंकी एक छोटी सभामें भी अपना सन्देश[१] देनेका सौभाग्य प्राप्त हुआ। हो सका तो इसका हाल आगे लिखूँगा। मैंने यह खयाल भी नहीं किया था कि मुझे कितने ही नेपाली, भूटिया तथा अन्य लोगोंसे मिलनेका सुअवसर मिलेगा। उन्होंने उस सन्देशमें सबसे ज्यादा अनुराग दिखाया। परन्तु मुझे सबसे ज्यादा खुशी तो हुई श्रीमती बासन्ती देवीको सूत कातना सीखते हुए और बीमारीके दिनोंको अपवाद मानकर नित्य नियमसे आध घंटा सूत कातनेका व्रत लेते हुए देखकर। उनकी लड़की तो सूत कातना जानती ही थी। पर बासन्ती देवीने इस ओर ध्यान नहीं दिया था। अब उन्होंने फिर चरखा चलाना आरम्भ किया है और साथ ही तकली भी चलाने लगी हैं। तकली उन्होंने १० ही मिनटमें सीख ली। श्रीमती उर्मिला देवी तथा उनके बच्चे तो कुछ दिनोंसे नियमित रूपसे सूत कातते हैं। और खुद देशबन्धु दास भी तकली चलाना सीखते थे। परन्तु उन्हें सरकारको बार-बार पराजित करने और अपने मुवक्किलोंको जितानेसे सूत कातना अधिक मुश्किल लगता है। अपने पतिकी वकालत करते हुए श्रीमती बासन्ती देवीने

  1. देखिए "भाषण : ईसाई धर्म प्रचारिकाओंके समक्ष", ६-६-१९२५ ।