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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

केवल हँसीमें कही होगी। क्या विदेशी कपड़ा पहननेमें सुख मिलता है? क्या यह 'गुलामीमें सुख मिलता है' कहने जैसी बात नहीं है? अमेरिकामें कई जगह यह देखा गया था कि जब दक्षिण प्रदेशोंमें गुलामीका अन्त किया गया तो गुलाम आजादी लेनेसे इनकार करते थे; गुलामी उनकी प्रकृति बन चुकी थी।

लाखोंको खिलाओ

४९ बंगाली रेजीमेंटके एक सदस्य लिखते हैं :

यह बात तो सभी स्वीकार करते हैं कि आप दुनियाके सबसे बड़े नेता हैं। सबसे बड़े नेताका उद्देश्य क्या है? सबसे बड़े नेताका उद्देश्य है भारतके लाखों भूखोंको अन्न देना। यह बात ठीक है न? जबतक आप ३२ करोड़ भारतीयोंको अन्न और वस्त्र प्रदान नहीं कर सकते, आप स्वराज्य मिलनेकी आशा नहीं कर सकते। यदि आप मुझे एक अरब रुपया दे दें तो मैं आपको स्वराज्य तुरन्त दे सकता हूँ। आप स्वराज्यकी बातें करते हैं, आप चरखे इत्यादि की बातें करते हैं; लेकिन आप लाखों-करोड़ों भूखोंको भोजन देनकी बात नहीं करते। जिस मनुष्यको उचित भोजन नहीं मिलता, वह चरखा नहीं चला सकता। सर्वप्रथम पेट फिर वस्त्र। मैं एक दिन नंगा रह सकता हूँ; लेकिन मैं भूखा दो घंटे भी नहीं रह सकता। यदि आप भारतीयोंको भोजन तथा धन दे सकें तो भारतीय जनता आपकी बातपर तुरन्त अमल करेगी, अन्यथा नहीं करेगी।

पहले तो मैं यह कह दूँ कि मैं "सबसे बड़ा नेता" नहीं हूँ। वैसे मुझे ऐसा कहनेकी आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मैंने "सबसे बड़ा नेता" होनेका न तो कभी दावा किया है और न कभी यह उपाधि ही स्वीकार की है। मैं तो नित्य ही अपनी लघुता तथा असहाय अवस्थाका अनुभव करता हूँ। मैंने अभीतक यह अनुभव नहीं किया है कि मैं बड़ा हूँ, लेकिन यदि मैं लाखों-करोड़ों भूखोंका भरण-पोषण करनेसे बड़ा बन सकता हूँ तो मैं उस दिशामें जा रहा हूँ, क्योंकि मैं चरखेके नुस्खेके पक्षमें इससे कमका दावा नहीं करता। इसकी योजना लाखों-करोड़ों भूखोंको अन्न तथा वस्त्र देनेके उद्देश्यसे ही की गई है। मैं स्वीकार करता हूँ कि वस्त्रका स्थान दूसरा है। लेकिन चरखेका हेतु पहले भोजन देना तथा फिर वस्त्र देना है। मैंने केवल एक अरब रुपया एक बार ही देनेकी योजना नहीं की है। मेरी योजना तो हर साल कमसे-कम साठ करोड़ रुपया देनेकी है। इस फार्मूलेको मैं प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार करता हूँ कि फाके करनेवाली जनता केवल उन्हींकी पुकारपर चेतेगी जो उसके लिए भोजन तथा पैसेकी व्यवस्था करें। मैं जो कुछ देता हूँ उसमें दोनों ही शामिल हैं। लेकिन म्याऊँका ठौर पकड़े कौन? डाक्टर अमोघ औषध बता सकता है; लेकिन वह मरीजको उसे खानेके लिए बाध्य तो नहीं कर सकता। जनताका मुख्य मर्ज धनकी कमी नहीं है, कामकी कमी है। श्रम ही धन है। जो लाखों करोड़ों लोगोंको उनकी झोंपड़ियोंमें सम्मानित श्रम मुहैया करता है, वह उन्हें भोजन तथा वस्त्र देता है अथवा धन देता है, क्योंकि भोजन और वस्त्र धन ही हैं। चरखा इस प्रकारका श्रम मुहैया