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१५४. तार : वाइकोम सत्याग्रह आश्रमको[१]

१७ जून, १९२५

सत्याग्रह आश्रम
वाइकोम

सुनता हूँ प्रतिबन्धक आदेश वापस ले लिये गये। बधाई। आशा है कि कटुता पैदा करनेवाला कोई प्रदर्शन नहीं किया जायेगा और न रूढ़िवादियोंको भड़कानेवाली कोई अनावश्यक कार्रवाई।

गांधी

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १०६४४) की फोटो-नकलसे।

 

१५५. महान् शोक

कलकत्ता
१७ जून, १९२५

जब हृदयको गहरी चोट लगती है तब कलम नहीं चलती। मैं यहाँ चारों ओर उमड़ते शोकमें इतना डूब गया हूँ कि 'यंग इंडिया' के पाठकोंके लिए तार द्वारा अधिक कुछ सामग्री भेजनेमें असमर्थ हूँ। अभी दार्जिलिंगमें उस महान् देशभक्तके साथ ५ रोजतक मेरा साथ रहा। उसके फलस्वरूप हम दोनों पहलेसे कहीं अधिक एक- दूसरेके नजदीक आ गये थे। इस बार मैंने केवल यही अनुभव नहीं किया कि देशबन्धु कितने महान् थे, बल्कि यह भी अनुभव किया कि वे कितने नेक थे। भारतका एक अनमोल रत्न खो गया है। हमें चाहिए कि हम स्वराज्य लेकर उसे पुनः प्राप्त कर लें।

मो॰ क॰ गांधी

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १८-६-१९२५
  1. मार्च, १९२५ में गांधीजी केरलके दौरेपर गये थे और वहाँ उन्होंने के॰ केलप्पन नायर-जैसे स्थानीय नेताओं और त्रिवेन्द्रमके पुलिस कमिश्नर डब्ल्यू॰ एच॰ पिटसे बातचीतकी। बादमें वे इस समस्याके सम्बन्धमें इन लोगोंसे पत्र-व्यवहार करते रहे; देखिए खण्ड २६, पृष्ठ ३१६-१७। इस पत्र-व्यवहारको उन्होंने २४ मार्चको अखबारोंमें प्रकाशनार्थ जारी करते हुए बताया कि इस पत्र-व्यवहारमें जो "मतैक्य" हो पाया है, वह इस सुधारके लिए किये जा रहे आन्दोलनमें किसी हृदतक प्रगतिका सूचक है।