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१५७. भाषण : खुलनाकी सार्वजनिक सभामें[१]

१७ जून, १९२५

आचार्य रायने आप लोगोंको बताया है कि हमपर कैसा वज्रपात हुआ है। परन्तु मैं जानता हूँ कि अगर हम सच्चे देश-सेवक हैं तो कितना ही बड़ा वज्रपात क्यों न हो, वह हमारा साहस नहीं तोड़ सकता। आज सवेरे यह शोक-समाचार सुनते ही मुझे यह न सूझ पड़ा कि मेरे सामने जो दो परस्पर विरोधी कर्त्तव्य उपस्थित हैं, उनमें से कौन-सा करूँ। मेरा कर्त्तव्य था कि मैं पहली गाड़ीसे कलकत्ता चला जाता। पर मेरा कर्त्तव्य यह भी था कि आपके निर्धारित किये गये कार्यक्रमको पूरा करूँ। मेरी सेवावृत्तिने यही प्रेरणा दी कि यहाँका कार्य पूरा किया जाए। यद्यपि मैंने यहाँ दूर- दूरसे आये हुए लोगोंसे मिलनेके लिए रुक जाना ज्यादा ठीक माना है तथापि उनके सामने कांग्रेसके कार्यकी विवेचना न करके आज स्वर्गीय देशबन्धुका ही जिक्र करूँगा। मुझे विश्वास है कि मेरे कलकत्ता दौड़ जानेकी अपेक्षा यदि मैं यहाँका काम पूरा कर लूँ तो उनकी आत्माको अधिक प्रसन्नता होगी।

देशबन्धु दास महानतम व्यक्तियोंमें से थे।[२] मैं लगभग छः वर्षोंसे उन्हें जानता हूँ। कुछ ही दिन पहले जब मैं दार्जिलिंगमें उनसे विदा हुआ था, तब मैंने एक मित्रसे कहा था कि उनसे मेरा सामीप्य जितना बढ़ता जाता है उतना ही उनके प्रति मेरा प्रेम भी बढ़ता जाता है। मैंने दार्जिलिंगमें देखा कि उनके मनमें भारतकी भलाईके सिवा और कोई खयाल ही न था। वे भारतकी स्वाधीनताका ही सपना देखते थे, उसीका विचार करते और उसीके बारेमें बातचीत करते थे, अन्य बातोंके बारेमें नहीं। दार्जिलिंगमें मेरे बिदा होते समय भी, उन्होंने मुझसे कहा था कि आप विभिन्न दलोंके बीच एकता स्थापित करनेके लिए बंगालमें कुछ दिन और ठहरिए ताकि बंगालके दौरेकी अवधिमें सब लोगोंकी शक्ति एक ही कार्यके लिए संयुक्त हो जाए।

उनसे मतभेद रखनेवालोंने और उनपर बेतरह नुक्ताचीनी करनेवालोंने भी बिना हिचकिचाहटके इस बातको स्वीकार किया है कि बंगालमें ऐसा कोई मनुष्य नहीं जो उनका स्थान ले सके। वे निर्भीक थे, बीर थे। बंगालके नवयुवकोंके प्रति उनका स्नेह निस्सीम था। किसी नवयुवकने मुझसे ऐसा नहीं कहा कि देशबन्धुसे सहायता माँगने- पर कभी किसीकी प्रार्थना खाली गई। उन्होंने लाखों रुपया पैदा किया और लाखों रुपया बंगालके नवयुवकोंमें बाँट दिया। उनका त्याग अनुपम था, उनकी महान् बुद्धिमत्ता और राजनीतिज्ञताके बारेमें मुझ जैसा व्यक्ति क्या कह सकता है?

  1. खुलनामें महात्मा गांधीको सात अभिनन्दन-पत्र दिये गये; वे नगरपालिका, जिला बोर्ड और लोक संघ, इत्यादि स्थानीय संस्थाओंकी ओरसे थे। प्रफुल्लचन्द्र रायने देशबन्धु चित्तरंजन दासके निधनका समाचार बताया था।
  2. समाचार पत्रोंके विवरणोंके अनुसार इतना कहनेके अनन्तर गांधीजी रो पड़े और एक या दो मिनटतक उनका कण्ठ अवरुद्ध रहा——वे बोल न सके।