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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

उन्होंने दार्जिलिंगमें मुझसे अनेक बार कहा था कि भारतकी स्वाधीनताका दारोमदार अहिंसा और सत्यपर है। भारतके हिन्दुओं और मुसलमानोंको जानना चाहिए कि उनका हृदय हिन्दू-मुसलमानका भेद जानता ही न था। मैं भारतके सब अंग्रेजोंसे कहता हूँ कि उनके प्रति भी उनके मनमें कोई बुरा भाव न था। उनकी अपनी मातृभूमिके प्रति यही प्रतिज्ञा थी——'मैं जीऊँगा तो स्वराज्यके लिए और मरूँगा भी तो स्वराज्यके लिए।'

हम उनकी स्मृतिको चिरस्थायी बनानेके लिए क्या करें? आँसू बहाना सहज है; परन्तु ऐसा करनेसे हमारी या उनके स्वजन-परिजनोंकी सहायता नहीं हो सकती। अगर हममें से प्रत्येक व्यक्ति——हिन्दू, मुसलमान, पारसी और ईसाई उस कामको करनेकी प्रतिज्ञा करे जो उनके हृदयमें बसा हुआ था, जिसके लिए वे परिश्रम करते थे और जिसमें वे स्वयं लगे रहते थे तो समझा जायेगा कि हमने सचमुच कुछ किया। हम सब ईश्वरको मानते हैं। हमें जानना चाहिए कि शरीर अनित्य है और आत्मा नित्य है। देशबन्धुका शरीर नष्ट हो गया, परन्तु उनकी आत्मा कभी नष्ट न होगी। न केवल उनकी आत्मा, बल्कि उनका नाम भी——जिन्होंने इतनी बड़ी सेवा और त्याग किया है——अमर रहेगा। जो भी व्यक्ति, जवान या बूढ़ा उनके आदर्शपर थोड़ा-बहुत भी चलेगा, वह उनकी यादगार बनाये रखनेमें मदद देगा। हमारे पास उनकी-सी बुद्धिमत्ता नहीं; पर हम उस भावनाको अपना सकते हैं जिससे वे देशकी सेवा करते थे।

देशबन्धुने पटना और दार्जिलिंगमें सूत कातना सीखनेकी कोशिश की थी। मैंने उनको चरखा चलाना सिखाया और उन्होंने मुझसे वादा किया था कि मैं कातना सीखनेकी कोशिश करूँगा और जबतक स्वास्थ्य साथ देगा तबतक कातना न छोडूँगा। उन्होंने अपने दार्जिलिंगके निवासस्थानको 'चरखा क्लब' बना दिया था। उनकी साध्वी पत्नीने वचन दिया था कि बीमारीकी हालत छोड़कर, मैं रोज आध घंटेतक स्वयं चरखा चलाऊँगी। उनकी लड़की, बहन और भानजी तो बराबर ही चरखा कातती थीं। देशबन्धु मुझसे प्राय: कहा करते : 'मैं समझता था कि कौंसिलमें जाना जरूरी है, मगर चरखा कातना भी उतना ही जरूरी——न सिर्फ जरूरी है, बल्कि बिना चरखके कौंसिलके कामको कारगर बनाना असम्भव है।' उन्होंने जबसे खादीकी पोशाक पहननी शुरू की तबसे अन्तिम दिवसतक पहनते रहे।

उन्होंने हिन्दू और मुसलमानोंमें मेल पैदा करनेके लिए कितना बड़ा काम किया था, यह कहना मेरा काम नहीं है; यह तो सर्वविदित है। अस्पृश्योंके प्रति वे कितना प्रेम रखते थे, इसके विषयमें सिर्फ एक बात कहूँगा जो मैंने बारीसालमें कल रातको, एक नामशूद्र नेतासे सुनी थी। उस नेताने कहा कि उन्हें पहली आर्थिक सहायता देशबन्धुने दी, बादमें डाक्टर रायने। आप सब लोग कौंसिलोंमें नहीं जा सकते। परन्तु वे तीनों काम जो उनको प्रिय थे, आप कर सकते हैं।

मैं अपनेको भारतका एक निष्ठावान् और देशबन्धुका वफादार भाई और सहयोगी मानता हूँ। इस कारण मैं आम तौरपर घोषित किया करता हूँ कि मैं अपने सिद्धान्तोंकी रक्षा करता हुआ, भविष्यमें देशबन्धु दासके अनुयायियोंको, यदि सम्भव हुआ