पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 27.pdf/२९९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२६७
क्या हम तैयार हैं?

तो उनके कौंसिलके कार्यक्रममें पहलेसे अधिक सहायता दूँगा। ईश्वरसे मेरी प्रार्थना है कि वह मेरे द्वारा कोई ऐसा काम न कराये और मुखसे कोई ऐसी बात न कहलाये जिससे देशबन्धुके कार्यमें क्षति पहुँच सकती हो। हम दोनोंके बीच कौंसिल-प्रवेशके सम्बन्धमें मतभेद था ही। फिर भी हमारा हृदय एक था। राजनैतिक तरीकोंमें तो सदा मतभेद बना रहेगा। परन्तु उसके कारण लोगोंको एक-दूसरेसे अलग नहीं हो जाना चाहिए और न परस्पर शत्रुता पैदा होने देनी चाहिए। जो स्वदेश-प्रेम मुझे एक कामके लिए प्रेरित करता था वही उनको कुछ दूसरा काम करनेको प्रेरित करता था। ऐसा पवित्र मतभेद देशके काममें बाधक नहीं हो सकता। साधन-सम्बन्धी मतभेद नहीं बल्कि हृदयकी मलिनता ही अनर्थकारी होती हैं।

दार्जिलिंगमें रहते समय मैं देखता था कि देशबन्धुके दिलमें उनके राजनीतिक विरोधियोंके प्रति नम्रता प्रतिदिन बढ़ती जाती थी। मैं उन पवित्र संस्मरणोंका उल्लेख यहाँ न करूँगा। देशबन्धु देश-सेवकोंमें एक रत्न थे। उनकी सेवा और त्याग बेजोड़ थे। ईश्वर करे, उनकी याद हमारे दिलोंमें सदा बनी रहे और उनका आदर्श हमारे सत्प्रयत्नोंमें सहायक हो। हमारा मार्ग लम्बा और दुर्गम है। उसमें हमें आत्म-निर्भरताके सिवा कोई सहारा नहीं देगा। स्वावलम्बन ही देशबन्धुका आदर्श था। वह हमें सदा अनुप्राणित करता रहे। ईश्वर उनकी आत्माको शान्ति दे।

[अंग्रेजीसे]
हिन्दू, १८-६-१९२५
 

१५८. क्या हम तैयार हैं?

श्री भरूचाने[१] मुझसे सार्वजनिक रूपसे प्रार्थना की है कि मैं फिरसे एक सर्वदलीय सम्मेलन बुलाऊँ, क्योंकि उनकी रायमें यह समय उसके मुआफिक है। देशबन्धु दासने 'मराठा' की एक प्रति मुझे दी है। उसमें भी, मैंने एक ऐसी ही प्रार्थना देखी। मुझे मालूम है कि सरोजिनी देवीका भी विचार यही है। परन्तु इस सम्बन्धमें मेरी स्थिति बहुत-कुछ वैसी ही है, जैसी कि कांग्रेसकी बैठक बुलानेके सम्बन्धमें। यदि मुझे श्री जिन्ना, सर मुहम्मद शफी, पण्डित मदनमोहन मालवीयजी, लाला लाजपतराय, श्री श्रीनिवास शास्त्री, सर सुरेन्द्रनाथ, कट्टरपंथी अ-ब्राह्मण नेताओं, श्री सी॰ वाई॰ चिन्तामणि, डा॰ सप्रू तथा अन्य लोगोंकी ओरसे कहा जाये तो मैं खुशी के साथ सम्मेलन बुलाऊँगा। मेरा निजी खयाल तो यह है कि एकताके लिए आज हम उससे ज्यादा तैयार नहीं हैं जितने कि दिल्लीमें थे। यदि यह सम्मेलन हम स्वराज्यके सम्बन्धमें बुलाना चाहते हैं तो हम हिन्दू-मुस्लिम प्रश्नपर लड़ पड़ेंगे। यदि सम्मेलन बुलानेका हमारा मंशा यह है कि कांग्रेसके मंचपर तमाम दल आ जायें तो नई तजवीजें करने या उनपर पहले विचार करनेका काम अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीका है। क्योंकि

  1. बी॰ एफ॰ भरूचा।