पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 27.pdf/३००

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२६८
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जबतक कांग्रेसके मौजूदा सदस्य एकताकी इच्छा व्यक्त करने और कामकी योजना बनानेके बारेमें सन्तोषजनक रूपसे सहमत नहीं हो जाते तबतक सब दलोंका सामान्य सम्मेलन बुलानेसे कुछ भी हासिल न होगा। यदि इसके रास्तेमें अकेली कताई-सदस्यता ही बाधक हो तो उससे निपटनेका तरीका और भी आसान है। जिन लोगोंने इस मताधिकारको शुरूमें तय किया था, वे ही पहले इसके परिवर्तनके सुझावपर विचार करें। वे लोग कौन हैं? स्वराज्य दल——उसके इक्के-दुक्के सदस्य नहीं——और मैं। मताधिकार सम्बन्धी समझौता, स्वराज्य दल तथा मेरे बीच हुआ था। यों तो मैं किसी दलका प्रतिनिधि नहीं था, पर फिर भी मैं अपने जैसे विचार रखनेवाले लोगोंका, जिनकी संख्या अनिश्चित है, प्रतिनिधि तो था ही। मैं स्वराज्य दलकी रजामन्दीके बिना कांग्रेसमें कोई काम करना नहीं चाहता। अतएव यदि वह दल मताधिकारमें परिवर्तन करना चाहता है तो वह जहाँतक मुझसे ताल्लुक है, आज भी ऐसा कर सकता है——सिर्फ उसके कहने-भरकी देर है। और जब वह दल अपना मत निश्चित कर लेगा तब उसे कार्यरूपमें परिणत करनेके लिए अखिल भारतीय कांग्रेसकी बैठक बुलाई जा सकती है। मैं कांग्रेसके अन्दर अपनेको कुछ नहीं मानता। मैं मानता हूँ कि आज देशका शिक्षित समुदाय चरखा तथा अन्य कई प्रश्नोंपर मेरे साथ नहीं है। भारतवासियोंके शिक्षित-समाजने ही कांग्रेसको जन्म दिया था और उसमें उन्हींकी प्रधानता रहनी चाहिए, उसकी नीतिकी बागडोर भी उन्हींके हाथोंमें होनी चाहिए। मेरा दिल कहता है कि मैं जन-साधारणके विचारोंका प्रतिनिधित्व करता हूँ, फिर वह कितने ही अपूर्ण रूपसे क्यों न हो। मैं कांग्रेसपर अपने विचारोंका असर अप्रत्यक्ष रूपसे डालना चाहता हूँ, अर्थात् मतोंकी गिनती करके नहीं, बल्कि दलीलों और वस्तुस्थितिको सदस्योंके सामने रखकर और उन्हें अपनी बातोंका कायल करके; क्योंकि मत तो सम्भव है ऐसे कारणोंसे भी मिल जायें, जिनका सम्बन्धित विषयके गुण-दोषसे कोई सम्बन्ध न हो। जबतक जनता खुद सोचने लायक नहीं बन जाती तबतक वह उन लोगोंके कहनेपर ही चलेगी जिनका उसपर उस समय प्रभाव होगा। ऐसी अवस्थामें उनके मतोंका सहारा लेना अनुचित होगा। इसलिए यदि स्वराज्य दल जो निश्चित रूपसे शिक्षित समाजके साथ आधेसे ज्यादा हिस्सेका प्रतिनिधित्व करता है, कताई-सदस्यताको उड़ा देना चाहता हो तो वह ऐसा आज भी कर सकता है। मेरी ओरसे उसका कोई विरोध कदापि न होगा। हाँ, यह जरूर है कि उस अवस्थामें मुझसे कांग्रेसका नेतृत्व करते रहनेकी उम्मीद रखना बेजा होगा। फिलहाल मैं त्रिसूत्री रचनात्मक कार्यक्रमके अलावा किसी भी दूसरे कामके अयोग्य हूँ। मेरे नजदीक उसकी सफलता ही स्वराज्य है और उसके बिना स्वराज्य एक असम्भव चीज है। ऐसी अवस्थामें मुझे अवश्य ही उन लोगोंके लिए जगह कर देनी चाहिए, जिनके बारेमें यह कहा जाता है कि उनका दृष्टिकोण अपेक्षाकृत व्यापक है।

सुना है कि श्री देशमुखने कहा है कि यदि मैं अपने विचारोंको बदल न सकूँ तो मुझे सार्वजनिक जीवनसे हट जाना चाहिए। मैंने उनका सताराका भाषण पढ़ा नहीं है; पर यदि उन्होंने ऐसा कहा है तो उन्हें इसका पूरा हक था। मैं भी किसी