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क्या हम तैयार हैं?

व्यक्तिके लिए ऐसा ही कहूँगा, यदि मेरी यह धारणा हो कि उसके कार्योंसे देशकी हानि हो रही है। क्या तमाम असहयोगियोंने कौंसिलोंके सदस्योंसे इस्तीफा देनेका आग्रह नहीं किया था? हो सकता है कि श्री देशमुखका विचार भ्रमपूर्ण हो, पर एक सार्वजनिक कार्यकर्त्ताके नाते अपनी बात कहनेके उनके अधिकारपर कोई आपत्ति नहीं की जा सकती; उन्होंने कोई नई या अजीब बात भी नहीं कही है। दर हकीकत ऐसा एक समय था जब मैं संजीदगीके साथ कांग्रेससे हट जानेका विचार कर रहा था; पर अन्तमें मैंने सोचा कि उससे कोई लाभ नहीं होगा। मैं मौलाना मुहम्मद अलीकी इस बातसे सहमत हूँ कि कोई भी सार्वजनिक कार्यकर्त्ता, जबतक स्वयं उसे अपनी बातमें विश्वास है, अपने उत्तरदायित्वको नहीं छोड़ सकता। लोग चाहें तो उसे भले हटा दें। उन्होंने कहा कि यदि आप जल्दी करके समयसे पहले कांग्रेससे हट जायेंगे तो आप अपने राजनीतिक प्रतिपक्षियोंपर तथा देशपर बेजा बोझ डाल देंगे। अपने पैंगामपर विश्वास होते हुए भी आप कांग्रेस तभी छोड़ें जब आपकी लोकप्रियता नष्ट हो जाये। और ऐसी अवस्था आ जानेपर भी यह निर्णय करना कि अमुक रवैयेपर डटा रहूँ या पीछे हट जाऊँ, बड़ा ही नाजुक विषय होता है। बात यह है कि किसीके कहनेसे स्वेच्छापूर्वक स्वीकार किये गये सेवा-कार्यसे अलहदा हो जाना जितनी दिखाई देती है, उतनी आसान बात नहीं है। परन्तु श्री देशमुखने हिम्मत करके लोगोंके लिए इस सवालपर विचार करनेका रास्ता साफ कर दिया है। जो लोग चाहते हैं कि मैं यह क्षेत्र छोड़ दूँ, उन्हें कमसे-कम मेरे उन साधनों और विचारोंके खिलाफ, जिन्हें वे अनुपयुक्त समझते हों, लोकमत तो तैयार करना ही चाहिए। मेरा महात्मापन किसी खोटे सिक्केको चलानेका परवाना न माना जाये।

पर मेरे लिए चरखा खोटा सिक्का नहीं है। उसपर मेरी इतनी श्रद्धा है कि सारी दुनिया के विरुद्ध हो जानेपर भी मैं उसकी हिमायत करूँगा। मैं आजादी सब लोगोंके लिए चाहता हूँ। मैं उसका विचार अहिंसाकी ही भाषामें कर सकता हूँ। यदि हमें आजादी बिलकुल अहिंसात्मक साधनोंसे ही प्राप्त करनी है तो हम उसे केवल चरखेके ही द्वारा प्राप्त कर सकते हैं। चरखेके अन्दर हिन्दू-मुस्लिम एकता, अस्पृश्यता-निवारण और दूसरी कितनी ही चीजें शामिल हैं, जिनके उल्लेखकी यहाँ आवश्यकता नहीं है। मेरी रायमें यदि कांग्रेस इस मताधिकारको हटा देगी तो वह भयंकर भूल करेगी। परन्तु लोकतन्त्रमें मेरा जो विश्वास है, उसमें यदि भयंकर भूलेंतक कर बैठनेका अधिकार शामिल न हो तो वह विश्वास कौड़ी मोलका भी नहीं रहेगा। इसीलिए मैं समझता हूँ कि यदि दूसरे लोग उससे अनुप्राणित नहीं होते तो मेरा विश्वास मेरी अपनी दृष्टिसे सही होते हुए भी तिरस्कृत कर दिया जाना चाहिए। मैं तो चाहता हूँ कि चरखेपर लोगोंकी जीवन्त श्रद्धा हो; उसके फलस्वरूप वे सक्रिय सहयोग करें। कोरी "हाँ, हाँ," करने और तदनुसार काम न करनेसे किसीको लाभ नहीं हो सकता। इस विषयमें किसी निष्कर्षपर पहुँचनेका प्रयास करते समय मेरा व्यक्तिगत खयाल बिलकुल ही नहीं किया जाना चाहिए। हमारी इस महान् प्राचीन धर्मभूमि भारतके विकासके लिए कोई भी व्यक्ति अपरिहार्य नहीं है। सैकड़ों