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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

गांधियोंका नामोनिशाँ मिट जाये तो हर्ज नहीं, भारतवर्ष जीता-जागता और फलता-फूलता रहे।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १८-६-१९२५

 

१५९. एक घरेलू प्रकरण

लायलपुरके एक वकीलने 'यंग इंडिया'के सम्पादकके नाम यह पत्र भेजा है :

कोई तीन या चार साल पहले कलकत्तेमें 'ऑल इंडिया स्टोर्स लिमिटेड' नामकी एक कम्पनी खोली गई थी। उसके डायरेक्टर थे——श्री हरिलाल मो॰ गांधी। रावलपिण्डीमें उस कम्पनीके एक प्रतिनिधिने यह प्रचारित किया था कि वे महात्मा गांधीके लड़के हैं। उस प्रतिनिधिने मेरे एक मुवक्किलको उस कम्पनीका हिस्सेदार बननेके लिए राजी कर लिया; मुवक्किलने उसे तथा उस कम्पनीको कुछ रुपये दिये और वे उस कम्पनीके शेयरहोल्डर बन गये। मैंने तथा मेरे उन मुवक्किलने कम्पनी द्वारा सूचित पतेपर——२२ अमरतल्ला स्ट्रीट, कलकत्ताको——पत्र लिखे। मेरे मुवक्किलको अन्देशा है कि शायद यह कम्पनी नकली थी और उनका रुपया डूब गया। अब आपकी (महात्माजीकी) कीर्ति तथा इस दरिद्र देशके आर्थिक कल्याणके नामपर मैं अपने मनको दिलासा देनेकी कोशिश कर रहा हूँ और चाहता हूँ तथा परमात्मासे प्रार्थना भी करता हूँ कि मेरे मुवक्किलकी यह आशंका निराधार साबित हो। डाकघरने हमारे तमाम पत्र "डेड लेटर आफिस" के द्वारा वापस कर दिये हैं। इसलिए मेरे मुवक्किलके इस शकके लिए कि वह कम्पनी डूब गई है, कुछ वजह जरूर मालूम होती है। क्या यह सच है कि महात्माजीके लड़के उस कम्पनीके डायरेक्टर थे? ऐसी कोई कम्पनी खड़ी भी की गई थी या नहीं और आज वह मौजूद है या नहीं; यदि है तो कहाँ?
कृपया यह सब लिखनेके लिए मुझे क्षमा कीजिए। मेरे मुवक्किल एक मुसलमान सज्जन हैं और महात्माजीके प्रति अपने आदर-भावके कारण ही वे उस कम्पनीके शेयरहोल्डर हुए थे। वे इन बातोंकी तसदीक कर लेना चाहते हैं। इसीलिए आपको यह तकलीफ दी गई है।

यदि इस पत्रमें कुछ महत्त्वपूर्ण सिद्धान्तोंकी बात शामिल न होती तो मैं इसका जवाब खानगी तौरपर देकर खामोश हो रहता——हालाँकि यह पत्र छापनेके उद्देश्यसे ही भेजा गया है। इसे प्रकाशित करना इस खयालसे भी आवश्यक है कि बहुत सम्भव है कि अन्य अनेक हिस्सेदार इन वकील साहबके मुवक्किलकी तरह सोच रहे हों। उन्हें भी उतनी तसल्ली हो जानी चाहिए, जितनी मैं दे सकता हूँ। हाँ, मैं अवश्य