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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

उसके नेताके स्वर्गवासके बाद, मेरा यह दोहरा कर्तव्य हो गया है कि मैं उस दलका साथ दूँ। यदि मैं उसकी सहायता न कर पाया तो भी उसकी प्रगतिमें तो मैं किसी तरह बाधक नहीं बनूँगा।

मैं फिर उनके फरीदपुरवाले भाषणपर आता हूँ। स्थानापन्न वाइसरायने श्रीमती बासन्ती देवी दासके नाम शोकसन्देश भेजा है। राष्ट्र वाइसराय महोदयकी शिष्टताकी कद्र करेगा। आंग्ल-भारतीय पत्रोंने स्वर्गीय देशबन्धुकी स्मृतिमें जो उनका यशोगान किया है उसका उल्लेख मैं कृतज्ञतापूर्वक करता हूँ। मालूम होता है कि फरीदपुरवाले भाषणकी खरी सत्यनिष्ठाकी भावनाने अंग्रेजोंके दिलपर अच्छा असर डाला है। मुझे इस बातकी चिन्ता है कि कहीं उनका स्वर्गवास केवल इस शिष्टाचार प्रदर्शनका अवसर बनकर ही न रह जाये। फरीदपुरवाले भाषणके मूलमें एक महान् उद्देश्य था। आंग्ल-भारतीय मित्रोंने चाहा था कि देशबन्धु अपनी स्थितिको स्पष्ट कर दें और अपनी तरफसे पहल करें। इसीके उत्तरमें उस महान् देशभक्तने वह भाषण किया था और अपनी स्थिति स्पष्ट की थी। पर क्रूर कालने उस उदार संकेतके प्रेरकको हमसे छीन लिया। परन्तु उन अंग्रेजोंको, जो अब भी देशबन्धुकी नीयतपर शक रखते हों, मैं यकीन दिलाना चाहता हूँ कि जबतक मैं दार्जिलिंगमें रहा, मेरे दिलपर जो बात सबसे ज्यादा जोरके साथ अंकित हुई, वह थी देशबन्धुके उन वचनोंमें निहित निर्मल भावना। क्या इस गौरवमय अन्तका सदुपयोग हमारे घावोंको भरने और अविश्वासको मिटानेमें नहीं किया जा सकता? मैं एक सीधी-सी बात सुझाता हूँ। सरकार देशबन्धु चित्तरंजन दासकी स्मृतिमें, जो जब अपने पक्षकी पैरवी करनेके लिए हमारे साथ दुनियामें नहीं हैं, उन तमाम राजनीतिक कैदियोंको छोड़ दे जिनके सम्बन्धमें उनका कहना था कि वे निर्दोष हैं। मैं निरपराधताकीं बिनापर उन्हें छोड़नेके लिए नहीं कहता। हो सकता है कि सरकारके पास उनके अपराधके लिए पक्के सबूत हों। मैं तो सिर्फ उस मृत आत्माके गुणोंकी स्मृतिमें, बिना पहलेसे कोई दुराग्रह रखे उन्हें छोड़ देनेके लिए कहता हूँ। यदि सरकार भारतीय लोकमतके अनुरंजनके लिए कुछ भी करना चाहती है तो इससे बढ़कर अनुकूल अवसर न मिलेगा और राजनीतिक कैदियोंकी रिहाईसे बढ़कर अनुकूल वायुमण्डल बनानेका अच्छा श्रीगणेश दूसरा न होगा। मैं प्रायः सारे बंगालका दौरा कर चुका हूँ। मैंने देखा है कि इस बातसे लोगोंके मनमें बड़ा रोष हैं——इनमें सभी लोग आवश्यक रूपसे स्वराज्यवादी नहीं हैं। परमात्मा करे कि वह अग्नि, जिसने कल देशबन्धुके नश्वर शरीरको भस्म कर डाला, हमारे नश्वर अविश्वास, सन्देह और डरको भी भस्मसात् कर दे। फिर यदि सरकार चाहे तो वह भारतवासियोंकी माँग——वह जो-कुछ भी हो——की पूर्तिके सर्वोत्तम उपायोंपर विचार करनेके लिए एक सम्मेलन बुला सकती है।

पर यदि सरकार अपने जिम्मेका काम कर लेगी तो हमें भी अपने हिस्सेका काम पूरा करना होगा। हममें यह दिखा देनेकी शक्ति होनी ही चाहिए कि हमारी नौका एक आदमीके भरोसे नहीं चल रही है। श्री विन्स्टन चर्चिलके शब्दोंमें, जो कि उन्होंने युद्धके समय कहे थे, हमें कह सकना चाहिए, 'सब काम ज्योंका-त्यों चलता रहेगा।'