पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 27.pdf/३०९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२७७
श्रद्धांजलि सभाके सम्बन्धमें निर्देश

स्वराज्यदलकी पुनर्रचना तुरन्त होनी चाहिए। पंजाबके हिन्दू और मुसलमान भी इस दैवी-प्रकोपको देखकर अपने लड़ाई-झगड़े भूल गये हैं, ऐसा प्रतीत होता है। क्या दोनों पक्षके लोग इतनी दृढ़ता और समझदारीका परिचय देंगे कि अपने लड़ाई-झगड़ोंका अन्त कर दें? देशबन्धु हिन्दू-मुस्लिम एकताके प्रेमी थे। उसपर उनका विश्वास भी था। उन्होंने अत्यन्त विकट परिस्थितिमें भी हिन्दुओं और मुसलमानोंको एक बनाये रखा। क्या उनकी चिताग्नि हमारे अनैक्यको भी न जला डालेगी? तमाम दलोंका एक संस्थाके अन्तर्गत आ मिलना शायद इसकी ठीक शुरुआत होगा। देशबन्धु इसके लिए बड़े उत्सुक थे। सम्भव है, उन्होंने अपने प्रतिपक्षियोंके सम्बन्धमें कटु वाक्य प्रयुक्त किये हों। परन्तु दार्जिलिंगमें मैं वहाँ जितने दिन ठहरा, देशबन्धुके मुँहसे उनके किसी भी राजनीतिक प्रतिपक्षीके प्रति एक भी कठोर शब्द निकलते न सुना। उन्होंने मुझसे कहा कि आप सब दलोंको एक करनेमें भरसक सहायता दीजिए। सो अब हम शिक्षित भारतवासियोंका कर्त्तव्य है कि देशबन्धुके इस दूरदर्शितापूर्ण विचारको कार्यरूपमें परिणत करें और उनके जीवनकी इस एक महत्त्वाकांक्षाको पूर्ण करें——यदि हम फिलहाल स्वराज्यकी सीढ़ीपर ठेठ ऊपरतक न पहुँच सकें तो उसकी कुछ सीढ़ियाँ तो तुरन्त ही चढ़ जायें। तभी हम अपने हृदयस्तलसे पुकार सकते हैं——'देशबन्धु स्वर्गवासी हुए; देशबन्धु जिन्दाबाद!'

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २५-६-१९२५
 

१६३. श्रद्धांजलि-सभाके सम्बन्धमें निर्देश

कलकत्ता
१९ जून, १९२५

भारतने देशके कोने-कोनेमें शोक-सभाएँ करके अपनेको गौरवान्वित किया है। लेकिन जनताको देशबन्धुके प्रति अपना स्नेह पर्याप्त रूपमें व्यक्त करनेका समय नहीं मिल पाया। इसीलिए मेरा सुझाव है कि देश-भरमें जहाँ-जहाँ कांग्रेसका प्रभाव हो, हर कस्बे और हर गाँवमें एक श्रद्धांजलि सभाका आयोजन किया जाये और उसमें उपयुक्त प्रस्ताव पास किये जायें। मुझे आशा है कि सभी दलोंके लोग, यूरोपीय लोग भी, श्रद्धांजलि सभामें भाग लेनेके लिए आमन्त्रित किये जायेंगे।

मैं अन्यत्र कहीं लिख भी चुका हूँ कि देशबन्धुकी अन्तिम अभिलाषा यही थी कि सभी दल एक सर्वमान्य उद्देश्यको पूरा करनेके लिए एक हो जायें। ईश्वर करे यह अखिल भारतीय श्रद्धांजलि सभा सभी दलों और जातियोंके बीच वास्तविक एकताका मार्ग प्रशस्त कर दे।

मैंने कलकत्तामें मौजूद नेताओं और देशबन्धु परिवारके सदस्योंसे इस सभाकी तिथिके बारेमें मशविरा कर लिया है। उन्होंने इसके लिए पहली जुलाईका दिन निश्चित