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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

करनेका सुझाव दिया है, क्योंकि उनकी मृत्युके बादका सोलहवाँ दिन होनेके कारण यही श्राद्धका दिन पड़ता है। यदि समूचे देशकी सभाओंके लिए एक ही समय निर्धारित कर दिया जाये तो इन सभाओंका महत्त्व और भी बढ़ जायेगा। इसलिए मेरा सुझाव है कि आगामी पहली जुलाईके दिन पाँच बजे (स्टैंडर्ड टाइम) शामका समय इसके लिए ठीक किया जाये।

[अंग्रेजीसे]
सर्चलाइट, २४-६-१९२५
 

१६४. स्मरणांजलिके लिए निवेदन[१]

१९ जून, १९२५

जनताको यह बतला देना मेरा कर्त्तव्य है कि श्रीमती वासन्ती देवीको स्वनामधन्य अपने पतिके देहावसानके दिनसे ही दुःसह मानसिक तनावमें से गुजरना पड़ रही है। मैंने खुद दो दिन देखा है कि उनके पास संवेदना प्रकट करनेवालोंका तांता लगा रहा है। अपनी स्वाभाविक विनम्रताके कारण वे किसीसे भी मिलनेसे इनकार नहीं कर पातीं। इसका नतीजा यह हुआ है कि आज उनके शरीरने लगभग जवाब ही दे दिया है। शायद लोग नहीं जानते कि उनका शरीर बहुत ही कमजोर है और उनको दिलकी बीमारी भी है। उनके और राष्ट्रके ऊपर पड़े इस विपद्-कालमें यह तो उनका अपार साहस ही है, जो उनका साथ दे रहा। सामान्य परिस्थितिमें भी और वह भी किसी स्वस्थ व्यक्तिके लिए सुबहसे लेकर काफी रात गयेतक मुलाकातियोंसे एककेबाद-एक लगातार मिलते रहना सचमुच असहनीय मानसिक क्लान्ति हो जाती। मेरे काफी समझाने-बुझानेपर उन्होंने मुझे मुलाकातियोंके लिए एक समय निर्धारित करनेकी अनुमति दी है। मैंने मित्रों तथा बासन्ती देवीके चिकित्सक-सलाहकारोंसे मशविरा करके उनकी सहमतिसे मुलाकातियोंके लिए शामको ५ से ७ तकका समय निश्चित किया है। इस शोकसन्तप्त महिलासे मिलने आनेके इच्छुक सभी लोगोंसे मेरा विनम्र निवेदन है कि वे निर्धारित समयमें ही आयें। यदि इस अनुरोधको मान लिया गया तो सम्भव है कि बिलकुल ही खाट पकड़नेकी नौबत न आय।

क्या स्थानीय भाषाओंके समाचारपत्र इसका अनुवाद छापनेकी कृपा करेंगे?

मो॰ क॰ गांधी

अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ १०५९२) की फोटो नकलसे।

  1. यह सन्देश चित्तरंजन दासके निधनके बाद कलकत्तासे समाचारपत्रोंके लिए भेजा गया था। इसका मसविदा गांधीजीके स्वाक्षरोंमें है।