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१६५. चित्तरंजन दास

२० जून, १९२५

एक दिग्गज पुरुष उठ गया! बंगाल आज एक विधवाकी तरह हो गया है। कुछ सप्ताह पहले देशबन्धुकी आलोचना करनेवाले एक सज्जनने मुझसे कहा था, "यद्यपि यह सच है कि मैं उनके दोष बताता हूँ, फिर भी मैं आपके सामने स्पष्ट रूपसे कह रहा हूँ कि उनकी जगहपर बैठने लायक दूसरा कोई शख्स है ही नहीं।" जब खुलनाकी सभामें, जहाँ यह अत्यन्त क्षोभकारी समाचार मैंने पहले-पहल सुनाया, इस प्रसंगका मैंने जिक्र किया, तब आचार्य रायने छूटते ही कहा : "यह बिलकुल यथार्थ है। यदि मैं यह बता सकूँ कि रवीन्द्रनाथके बाद कविका स्थान कौन लेगा, तभी मैं यह भी कह सकूँगा कि देशबन्धुके बाद नेताका स्थान कौन ले सकता है। बंगालमें कोई आदमी ऐसा नहीं है जो देशबन्धुकी ऊँचाईके नजदीक भी पहुँच पाता हो।" वे सैकड़ों संघर्षोंके विजेता वीर थे। उनकी उदारता दोषकी हदतक बढ़ी हुई थी। वकालतमें उन्होंने लाखों रुपये पैदा किये, पर उन्होंने कभी उस धनका संचय करके धनी बनना न चाहा; यहाँतक कि अपना भव्य भवन भी दानमें दे डाला।

१९१९ में, पंजाब कांग्रेस जाँच-समितिके सिलसिलेमें उनसे मेरी पहले-पहल भेंट हुई थी। जब उनसे मिलनेका अवसर आया तब मेरे मनमें भय और शंकाके भाव थे। मैं दूर-दूरसे ही उनकी धुआँधार वकालत और उससे भी अधिक उनकी ओजस्विनी वक्तृत्वशक्तिके बारेमें सुनता रहा था। वे अपनी मोटरमें बैठकर सपत्नीक——सपरिवार——आये थे। वे राजाओंकी-सी शान-शौकतसे रहते थे। मेरा पहला अनुभव तो कुछ अच्छा न रहा। हम लोग हंटर-समितिकी तहकीकातमें गवाहियाँ दिलानेके प्रश्नपर विचार करनेके लिए बैठे थे। मैंने देखा कि वे तमाम कानूनी बारीकियोंसे परिचित थे और उनमें गवाहको जिरहमें परास्त कर देनेके साथ ही फौजी-कानूनसे संचालित शासन-व्यवस्थाकी अनेक शरारतों या कुचेष्टाओंकी कलई खोल देनेकी वकीलोचित तीव्र लालसा भी थी। मेरा प्रयोजन भिन्न था। मैंने उन्हें अपना मन्तव्य बताया। दूसरी मुलाकातके बाद मेरे दिलको तसल्ली हुई और मेरा तमाम डर दूर हो गया। मैंने जो-कुछ उन्होंने कहा उसे गौरके साथ सुना। भारतवर्षके बहुतेरे देशसेवकोंके घनिष्ठ सम्पर्कमें आनेका मेरा यह पहला अवसर था। तबतक कांग्रेसके किसी काममें मैंने व्यवहारतः कोई हिस्सा नहीं लिया था। वे मुझे दक्षिण आफ्रिकाके एक योद्धाके रूपमें ही जानते थे। पर इस समितिके मेरे तमाम साथियोंने मेरा संशय और संकोच दूर करके मुझे अपना दोस्त-जैसा बना लिया। और देशके इस विख्यात सेवकका नम्बर इसमें सबसे आगे था। मैं उस समितिका अध्यक्ष माना जाता था। 'जिन बातोंमें हमारा मतभेद होगा, उनमें मैं अपना मत आपके सामने उपस्थित कर दूँगा, फिर जो फैसला आप करेंगे उसे मान लूँगा, इसका यकीन मैं आपको दिलाता हूँ।' उनके