भरोसा हो——अन्योंको नहीं। यदि इन्हीं आठ दिनोंमें कोष एकत्र कर लेना है तो एक क्षण भी जाया नहीं होने देना चाहिए और यह तभी सम्भव है जब——
१. वे सबके-सब जो चन्दा देनेकी स्थितिमें हों, स्वयं दें और दूसरोंको ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित करें;
२. यदि चन्दा देनेकी तिथि टालनेके बजाय सभी लोग अभी दे डालें;
३. यदि सब लोग अपने सामर्थ्यके अनुसार अधिकसे-अधिक दें;
४. यदि मुफस्सिल केन्द्र इस कार्यको तत्काल ही हाथमें ले लें।
जनताको याद रखना चाहिए कि
१. यह स्मारक अखिल बंगाल स्मारक है——किसी विशेष जाति, धर्म, वर्ण या दलसे सम्बन्धित नहीं;
२. इसका आयोजन भारतके एक सर्वश्रेष्ठ व्यक्तिकी यादगारको हमेशाके लिए बनाये रखनेके उद्देश्यसे किया गया है;
३. इसका उद्देश्य मानवीय सेवाओंके अतिरिक्त और कुछ नहीं है;
मुझे यह भी मालूम है कि कलकत्तेमें एक ऐसे गैरसरकारी अस्पतालकी जरूरत है जिसमें केवल स्त्रियोंका इलाज हुआ करे और जिसमें नर्सोंको प्रशिक्षण मिला करे।
मुझे अब यह कहनेकी जरूरत नहीं रह गई है कि दानदाताओंके द्वारा प्रदत्त रकमोंका उचित उपयोग होगा, इसकी गारंटी न्यासियोंके नामोंपर से ही हो जाती है।
अमृतबाजार पत्रिका,२४-६-१९२५
१७०. पत्र : देवचन्द पारेखको
आषाढ़ सुदी १ [२२ जून, १९२५][१]
राजाओंसे पैसेकी सहायता लेनेकी बात मैं समझता हूँ। किन्तु सारा काम उनके अमलदारोंके मार्फत करवानेमें संकोच होता है। फिर भी जब आप सब इकट्ठे होकर विचार करेंगे तब मैं अधिक ठीक निश्चय कर सकूँगा। हमें यह सोचना है कि हर साल खर्चमें कमी कैसे करते जा सकते हैं और कैसे लोगोंको स्वावलम्बी बनाया जा सकता है।
बापूके आशीर्वाद
गुजराती पत्र (सी॰ डब्ल्यू॰ ६२०५) की फोटो-नकलसे।
सौजन्य : नारणदास गांधी
- ↑ डाककी मुहरमें कलकत्ता, २३ जून, १९२५ है। आषाढ़ सुदी पड़वा २२ जून की थी।