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कहलायेगा। बुद्धने अपना सर्वस्व त्याग दिया क्योंकि ऐसा किये बिना वह रह ही नहीं सकते थे। किसी भी चीजका संग्रह उनके लिए पीड़ाकारक था। लोकमान्य निर्धन बने रहे क्योंकि धनका भार उन्हें असह्य था। एन्ड्र्यूज चन्द रुपयोंको भी बोझ मानते हैं। यदि कहींसे कुछ धन उनके पास आ जाता है तो उन्हें उसे खत्म कर देनको चिन्ता पकड़ लेती है। मैं अकसर उनसे कहता हूँ कि तुमपर एक निगाह रखनेवाला आदमी चाहिए। सुनकर वह हँस देते हैं और बिना किसी खिन्नताके उसी तरह धन लुटाते चले जाते हैं। मादरे-हिन्द ऐसी-वैसी देवी नहीं है। वह शायद इच्छुक और अनिच्छुक अनेक युवकों और युवतियोंसे बलिदान करवानेके बाद ही कहेगी "शाबाश मेरे बच्चो! तुम अब स्वतन्त्र हो।" अभी तो हम त्यागका नाटक कर रहे हैं। सच्चे त्यागका समय अभी आया नहीं है।

सम्बद्ध स्कूलोंमें कताई

मुझे अपने बंगालके इस दौरेके दरम्यान कई नई बातोंका पता लग रहा है। इनमें बहुत-सी सुखद तथा कुछ दुःखद भी हैं। मदारीपुरसे कुछ ही दूरीपर एक ग्राम है, जिसका नाम उपसी है। इस ग्राममें एक हाईस्कूल चलाया जा रहा है। यह शिक्षा-विभागसे सम्बद्ध है, लेकिन कोई सहायता सरकारसे नहीं लेता। कताईके पुनरुज्जीवित होनेके बाद इसमें सभी छात्रोंके लिए एक घंटा कताई करना अनिवार्य कर दिया गया था। सन् १९२१ में मौलाना मुहम्मद अलीकी गिरफ्तारीपर बुनाई भी ऐच्छिक विषयके रूपमें आरम्भ की गई थी। यहाँ अभी हालतक बुना जानेवाला कपड़ा अर्ध-खद्दर होता था। कुछ माह पहले ही पूर्ण खादीकी बुनाई शुरू की गई है और प्रबन्धकोंने निश्चय किया है कि अब अर्ध-खद्दरके बजाय केवल शुद्ध खादीपर ध्यान केन्द्रित किया जाये। लगभग सौ लड़कोंको एक साथ सूत कातते देखकर चित्त बहुत प्रसन्न हुआ। पूछनेपर यह भी मालूम हुआ कि कताई अनिवार्य होनेपर लड़कोंकी संख्यामें कोई कमी नहीं हुई है। मुख्याध्यापकने कहा कि यदि माता-पिता सूत कातना अस्वीकार करते अथवा लड़के आपत्ति उठाते तो इसे जारी नहीं रखा जा सकता था।

मुख्याध्यापकने मेरे सम्मुख दर्शक-पुस्तिका रखी ताकि मैं उसमें अपनी सम्मति लिख दूँ।[१] इसमें सफे पलटनेपर मैंने स्कूलोंके इन्स्पेक्टरकी एक लम्बी रिपोर्ट पढ़ी। उसने लिखा था, 'मुझे कताईसे कोई द्वेष नहीं किन्तु इस प्रयोगके सम्बन्धमें मेरा अनुभव यह है कि वह प्रयोग जहाँ-कहीं किया गया है वहीं वह इसी स्कूलकी तरह असफल रहा है। मेरे खयालसे यह प्रयोग तभी सफल हो सकता है जब वह स्वावलम्बी हो।' मैं समझ नहीं पाता कि जब ज्यामितिकी कक्षा स्वावलम्बी नहीं होती तब कताईकी कक्षा ही स्वावलम्बी क्यों होनी चाहिए। ज्यामितिकी कक्षाकी सफलता लड़कोंकी ज्यामितिकी प्रगतिसे नापी जाती है। कताई कक्षाकी सफलता लड़कों द्वारा कताईमें प्राप्त की गई दक्षतासे नापी जानी चाहिए। और हाईस्कूलके लड़के दक्ष होकर तो दिखा ही सकते हैं। लेकिन मैं इन्स्पेक्टरकी चुनौती स्वीकार करने तथा यह दिखानेके लिए भी बिलकुल तैयार हूँ कि कुछ अपवादोंको छोड़कर साहित्यिक

  1. देखिए "सम्मति : दर्शक-पुस्तिकामें", १२-६-१९२५ ।