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टिप्पणियाँ

तब आप देखेंगे कि आपने जो भी मुद्दे उठाये हैं उनके उत्तर मेरे पहले दिये गये उत्तरोंमें आ जाते हैं। यदि उनसे आपका समाधान न हो तो मुझे प्रतीक्षा और प्रार्थना ही करनी होगी। मैं अब कुछ भी क्यों न लिखूँ, उससे सम्भवतः आपका समाधान नहीं होगा। मैंने देखा है कि हमारे जीवनमें एक समय ऐसा आता है जब तर्क हमें नहीं छूते; जब हर तर्कपर हमारा एक प्रति-तर्क तैयार रहता है। मेरे जो मित्र बहुत-सी बातोंमें मुझसे सहमत हैं, मैंने उनके विषयमें भी यही बात देखी है। किन्तु कुछ बातोंके बारेमें हमें अपने मतभेदको स्वीकार करके चलना होता है। मुझे आपके सम्बन्धमें भी ऐसा ही करना होगा। लेकिन मैं आपकी लगनकी सराहना करता हूँ। आप मेरे प्रवासमें कहीं मुझसे मिल लें। मैं तब आपसे आपकी इस समस्त विचारधाराके सम्बन्धमें प्रसन्नतापूर्वक चर्चा करूँगा। कभी-कभी जहाँ छपे शब्दसे काम नहीं चलता, बातचीत वहाँ काम दे जाती है। किन्तु मैं यहाँ एक बात कह दूँ। आप यह क्यों सोचते हैं कि हमें जबतक स्वराज्य नहीं मिलता, हम तबतक सूत नहीं का सकते और खद्दर नहीं पहन सकते या अस्पृश्यता निवारण नहीं कर सकते या मुसलमानोंसे हमारी एकता नहीं हो सकती? अंग्रेजोंके चले जानेसे हिन्दुओंको मुसलमानोंका या मुसलमानोंको हिन्दुओंका विश्वास करनेमें या धर्मान्ध रूढ़िवादियोंकी आँखें खोलने और दलित वर्गोंकी दशा सुधारनेमें या काहिल लोगोंको चरखा चलानेके लिए और बिगड़ी हुई रुचिके लोगोंकी रुचि सुधारने और उन्हें खद्दर पुनः पहिननेके लिए तैयार करनेमें किस तरह मदद मिल जायेगी? निश्चय ही यदि हम इस समय मुसीबतोंके दबावसे इन कामोंको नहीं कर सकते तो हम नाममात्रके स्वराज्यकी झूठी स्वतन्त्रताकी भावनासे आश्वस्त होनेपर तो उन्हें शायद करेंगे ही नहीं। यदि हम इन कार्योंको या इनमें से किसी कार्यको इस समय पूरा नहीं करते या पूरा करनेका प्रयत्न नहीं करते तो इसका कारण हमारी अनिच्छा, काहिली या इससे भी निकृष्ट किसी अन्य अवगुणके अतिरिक्त और कुछ नहीं है। मैं आपको और आपके मित्रोंको आमन्त्रित करता हूँ कि आप अपनी योग्यता और शक्तिको, जो आप में अवश्य ही है, इस रचनात्मक कार्यमें लगायें और तब आप देखेंगे कि स्वराज्य निकट आता जा रहा है। आपको यह दिखाई देता हो या न दिखाई देता हो; किन्तु आप इन तीनों उद्देश्योंको जिस हदतक पूरा कर रहे हैं, वह उसी अनुपातसे हमारे समीप आता जा रहा है। अछूतपनके दुर्गकी नींव दिन-प्रतिदिन खोखली हो रही है। चरखेकी आनन्द ध्वनि अधिकाधिक सुनाई देती चली जा रही है और यद्यपि प्रत्यक्षतः हिन्दू और मुसलमान जमकर लड़नेकी तैयारियाँ करते दिखते हैं; किन्तु वस्तुतः वे यह अनुभव कर रहे हैं कि ऐसा करनेसे कोई लाभ नहीं होगा। फिर भी सम्भव है यह लड़ाई न रुक सके। लड़ाई हो ही गई तो उसके बाद शान्तिका सूर्योदय होगा।

विजित अभिमान

कांग्रेस महामन्त्री लिखते हैं:

मुझे खेद है कि मैंने आपको १६ तारीखको सदस्यताकी जो सूची भेजी थी उसमें एक गलती रह गई है। बर्माका पिछले मासका कुल जोड़ ७० के