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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

१२०० लोगोंके बैठनेके लिए स्थान है। कुछ स्थान अवश्य ही सुरक्षित रखने होंगे, बाकीके लिए श्रीयुत एन॰ सी॰ सेनके पास ९८, बेलतला रोड, भवानीपुरके पतेसे अर्जी भेजी जानी चाहिए। वे आगामी इतवारतक ली जा सकेंगी। और यदि अर्जियोंकी संख्या उपलब्ध स्थानोंसे अधिक हुई तो लाटरी द्वारा उन लोगोंके नाम निश्चित किये जायेंगे, जिन्हें प्रवेशपत्र दिया जाना चाहिए। ऐसी सार्वजनिक सभाओंमें उपस्थिति नियंत्रित रखनेके सम्बन्धमें जो आशंकाएँ हैं, उनको मैं जानता हूँ। लेकिन मैं आशा करता हूँ कि जनता बेचारे संयोजकोंकी कठिनाईको महसूस करेगी। वे चाहते हैं कि टाउन हॉलमें सभी विचारोंके लोगोंका प्रतिनिधित्व हो। सार्वजनिक सभामें शायद अधिक भाषण न हो सकें या सम्भव है, वहाँ एक भी भाषण न हो। फिर भी उन लोगोंको जो अपनी भावनाएँ व्यक्त करना चाहते हैं, इसका कोई अवसर न मिल पाना खेदजनक होगा। ऐसा अवसर टाउन हालमें मिल सकता है।

इसलिए मैं आशा करता हूँ कि टाउन हॉलकी सभाको सफल बनानेमें जनता प्रबन्धकोंके साथ हार्दिक सहयोग करेगी। टाउन हॉलकी सभाकी अध्यक्षता करनेके लिए महाराजाधिराज बर्दवानने स्वीकृति देनेकी कृपा की है।

[अंग्रेजीसे]
अमृतबाजार पत्रिका, २७-६-१९२५
 

१८७. पहली जुलाई

मैंने यह सलाह दी है कि देशबन्धुकी स्मृतिमें उनके श्राद्धके दिन हिन्दुस्तानके प्रत्येक गाँव और शहरमें सार्वजनिक सभा की जाए। उस दिन धार्मिक भावनावाले लोग उपवास या एकाहार भी करें। देशबन्धुके घरमें तो ये सब हो ही रहा है। उन्हें कीर्तन प्रिय था, इसलिए नित्य रातको कीर्तन भी किया जाता है। जो स्नानादि [धार्मिक विधियाँ] करना चाहें, वे उन्हें भी कर सकते हैं। मुख्य बात तो ठीक पाँच बजे सभा करना और उसमें प्रस्ताव स्वीकृत करना है। गुजरातमें जहाँ-जहाँ कांग्रेसका सन्देश पहुँच सकता है वहाँ-वहाँ सभाएँ करना वांछनीय है। इन सभाओंमें स्वीकृत प्रस्तावकी नकल गंगास्वरूप बासन्ती देवीको डाकसे भेज देना पर्याप्त होगा। प्रान्तीय कमेटी भी अपनी ओरसे एक तार द्वारा गाँवोंकी सूची भेजे, जिससे यह पता चल जाएगा कि किन-किन जगहोंमें सभाएँ हुई हैं। सभाओंमें शोक-प्रस्ताव और देशबन्धुके गुणोंका कीर्तन तो हो ही, किन्तु प्रत्येक सभामें उसके अलावा दूसरे कार्य भी किए जा सकते हैं। हम देशबन्धुकी पूजा उनके स्वराज्य प्राप्तिके लिए किए गए कार्योंके कारण करते हैं। यदि इस स्वराज्यकी स्थापना आज ही हो सके तो देशबन्धुकी आत्माको पूर्ण शान्ति मिलेगी। यह कार्य इस समय हमारी शक्तिसे बाहर है। किन्तु स्वराज्यको समीप लाना हमारी शक्तिसे बाहर नहीं है।

राजा और रंक, मजदूर और मालिक, बूढ़े और बालक, स्त्री और पुरुष, हिन्दू और मुसलमान सब स्वराज्यको समीप लानेके लिए क्या कर सकते हैं? ऐसा कौन-सा